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Showing posts from July, 2013

पहचान

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  तुम्हें संदेह है मेरी पहचान पर, तो क्या सबूत देना होगा, मेरे ‘होने’ का वो जो मैं हूँ या फिर ‘न होने’ का वो जो मैं नहीं? क्या जान पाओगे मुझे सिर्फ मेरी आवाज़ से? क्या पहचान लोगे मुझे सिर्फ मेरी तस्वीर से?   मेरी आवाज़ कैसे बता पाएगी सारे राज़ जो मैंने बरसो छुपा कर रखे है खुद से भी. नहीं सुनाई देगी तुम्हें वो घुटी सी सिसकियाँ जो खुद मेरे कानों ने नहीं सुनी. नहीं सुन सकोगे मेरी आवाज़ में, वो अनकहे दर्द जो खुद अपने से भी छिपाये ताकि टूट कर बिखर न जाऊँ.   मेरी तस्वीर में क्या देख सकोगे उस छोटी सी लड़की को जो उड़ने के ख्वाब देखा करती थी. क्या देख पाओगे वो नोचे हुए पन्ने जिनमें अपनी अनकही शिकायतें लिख कर मिटा दिया करती थी. कैसे देखोगे वो हंसी के पीछे की नमी, वो उदासी, वो अकेलापन.   कैसे रूबरू करा पाऊँगी मैं अपनी ‘हक़ीकत’ से, अपनी ‘पहचान’ से, जब मैं खुद ही आज तक तलाश रही हूँ हक़ीकत अपनी, पहचान अपनी. © विनिता सुराना  

अभिमान (रोला छंद )

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अजब रचाया खेल, गजब है उसकी माया | चले कौन सी चाल, समझ में किसके आया || राजा हो या रंक, सभी को नाच नचाया | चूर हुआ अभिमान, चिता में काम न आया ||   जग है मायाजाल, उलझ कर मानव खोया | वसन मोह के ओढ़, नींद में गहरी सोया || तेरा मेरा जान, करे है संचित माया | मुरख करे अभिमान, साथ कब जाए काया || निस दिन निरखे रूप, रहा मन दर्पण मैला | दिया नहीं है दान, हाथ हैं फिर भी फैला || आये खाली हाथ, यहाँ से जाना खाली | तजे यहीं अभिमान, सजे पर-भव की थाली || -विनिता सुराना  'किरण'

सवेरा

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कल की रात, इक स्याह रात, सन्नाटे गहराए थे. कुछ बिखरे सपने, बिछड़े कुछ अपने, फिर याद आये थे. घेरे थे चाँद को, तारे भी थे सहमे, वो गहरे साए थे. करवटों में गुजरी रात, किसे कहते दिल की बात, जब अपने ही पराये थे. कोहरे को चीर कर, अब आया है सवेरा, चल पड़े है तलाशने, इक नया बसेरा. साथ है किरणों का और ओस में भीगी पवन, चल पड़े है अकेले, ढूंढने इक और चमन. गगनचुम्भी वृक्ष उठाये हाथ, दे रहे है दुआ अनेक, चलता जा मुसाफिर लेकर इरादे नेक. पीछे छूटी वो स्याह रात, भुला कर बीती बात, चुन ले नयी राह, 'किरण' आशा की किरणें कह रही, पूरी होगी हर चाह. -विनिता सुराना 'किरण' 

एक ग़ज़ल (1)

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तुझे खोकर कहाँ हम जी सकेंगे जुदाई का ज़हर क्या पी सकेंगे किया है प्यार तो इज़हार भी हो , मिले जो ज़ख्म कैसे सी सकेंगे. सफ़र होगा हसीं ग़र साथ दोगे हुए जो तुम खफ़ा मर ही सकेंगे घड़ी भर तो ज़रा ठहरो यहाँ तुम मिलेगा जो सुकूं सो भी सकेंगे भुला तुम भी नहीं सकते हमें 'किरण' तुझे खोकर न हम भी जी सकेंगे - विनिता सुराना

मुलाक़ात

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जाने कब होगी उनसे फिर मुलाक़ात ..... दिन-रात हम इंतज़ार करते हैं लिखकर नाम उनका रेत पर.... न मिटायेंगी लहरें एतबार करते हैं अरसे से प्यासी इस ज़मीं पर ....दो बूंद सावन की गिरे गुहार करते हैं सांसें टूटने से पहले झलक उनकी मिले .... दुआ ये हर बार करते हैं -विनिता सुराना 'किरण'

कोशिश

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डाल से टूटा हुआ पात जोड़ सकता नहीं वक़्त वो गुज़रा हुआ आज मोड़ सकता नहीं कोशिशें सच्ची अगर हैं कभी न हो हार फिर चल पड़े तो बीच मझ धार छोड़ सकता नहीं हार कर रुकना नहीं सांस जब तलक ये चले थम गया जो नीर, चट्टान तोड़ सकता नहीं -विनिता सुराना  'किरण'  

दोहे (प्रार्थना)

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खोजे मन हो बावरा, दिन रैना बेचैन | कण-कण में तुम सब कहें, तरसे फिर भी नैन || मंदिर गाई आरती, अर्पित कर फल-फूल | दीन-दुखी सेवे नहीं, सुख में जाते भूल || प्रभु मेरी विनती यही, हर लो सब की पीर | सिर आशिष का हाथ हो, हिवडे में हो धीर || -विनिता सुराना  'किरण'  

"स्व" (कुण्डलिया)

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होवे उनकी जय सदा , राखे "स्व" का मान | मीठी वाणी बोलते , देते वो सम्मान || देते वो सम्मान , नहीं मन उनका मैला | होती खाली जेब , कभी भी हाथ न फैला || समय बड़ा अनमोल , वही खोवे जो सोवे | जो नित करते काज , जीत बस उनकी होवे || - विनिता सुराना

ग़ज़ल सी ......

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रखी है संभाल कर निशानी आपकी महज़ कुछ कागज़ नहीं कहानी आपकी सजी जब महफ़िल जिक्र गुलों का ही छिड़ा रहे यूँ ही महकती जवानी आपकी वक़्त के हाथों बने खिलौना है सभी रहें महफूज़ बा खुदा गुमानी आपकी सितारें यूँ तो कई चमकते है मगर रहे रोशन ताउम्र रवानी आपकी किरण दिल में नहीं दुआ में हैं रखा ग़ज़ल सी बन जाए जिंदगानी आपकी -विनिता सुराना 'किरण'

दुआ (मुक्तिका)

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साथ नहीं अपने टूट गए सपने दुआ सबने की गैर क्या अपने -विनिता सुराना 'किरण'

लाला जी की कार (दोहे)

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कार चलाकर शान से , जाते लाला काम | भीड़ पड़ी बाज़ार में , भारी लागा जाम || कोलाहल है जोर का , काम न आये फोन | जुगत चले कोई नहीं , पार लगाए कौन || बैठे ठाले फँस गए , काश न लाते कार | रिक्शा में जो बैठते , हो ही जाते पार || मन ही मन पछता रहे , काहे ले ली कार | भीड़ पड़े चलती नहीं , पेट्रोल की मार || - विनिता सुराना 'किरण'

नारी (मुक्तक)

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नदिया सी चंचला तुम, धरा सी धीर हो भगिनी, सुता, जननी, रांझना की हीर हो कोमल हो कामिनी, स्वर-कोकिला भी तुम साहसी पद्मिनी, लक्ष्मी रानी वीर हो  -विनिता सुराना 'किरण'

सरगम, सावन, संगीत (दोहा, रोला, कुण्डलिया)

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दोहा सुर जब सरगम के लगे, मनवा नाचे झूम | सा रे गा मा संग हो, खूब मचाये धूम || रोला जीवन के दिन चार, झूम के नाचे गाए | दुःख की चुभे न धूप, संयम सुख में अपनाए || जो चित लागे ईश, न कोई पीर सताए | छेड़ भजन के राग, खूब जियरा हर्षाए || कुण्डलिया आया सावन झूम के, लाए मेघ बहार | रिमझिम बरसे मेघ हैं, झूमे सब नर-नार || झूमे सब नर-नार, ढोल औ चंग बजाए | हुलसे बाग़ा मोर, गीत कोयलिया गाए || सोना उपजे खेत, मेघ ने मन हर्षाया | नाचो गाओ आज, झूम के सावन आया || -विनिता सुराना 'किरण'

कहानी (मुक्तक)

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चलो एक और कहानी लिखते हैं कुछ नयी कुछ पुरानी लिखते हैं नयी सुबह में फिर मुलाकात होगी एक और रात सुहानी लिखते हैं -विनिता सुराना 'किरण'

स्वर्ग (मुक्तक)

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मंदिर-मस्जिद हम क्यूँ जाएं आओ यहीं धूनी रमाएं मन-दर्पण को झाड-पोछ लें धरती पर ही स्वर्ग बनाएं . -विनिता सुराना 'किरण'

राह (मुक्तक)

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साहिल पर खड़े सागर की थाह देखते रहे चंदा के लिए चकोर की चाह देखते रहे कहा था 'किरण' अब न देख पाएंगे तुझे कभी क्यों तेरे लौट आने की राह देखते रहे ? -विनिता सुराना 'किरण'

जीवन के रंग (मुक्तक)

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रोशन कहीं सूरज, चाँद, तारे हैं बुझ गए कहीं दीये भी सारे हैं देखे हैं रंग जीवन के अजब से नहीं बूँद कहीं, कहीं रस-धारे हैं. -विनिता सुराना 'किरण'

वंदेमातरम् (दोहे)

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नमन तुझे सब जन करें, जननी तू हिं कहाय | यश तेरा जग में रहे, चारों दिशा हिं गाय || सीमा पर सैनिक खड़े, रिपु निकट नहीं आय | कनक रहे धरती सदा,  बहुर अन्न उपजाय || धरम-करम में लीन हो, शुद्ध रहे आचार | हो निर्भय  विचरण करें, बाल, वृद्ध अरु नार || भक्ति करें तेरी सदा, वंदन ही हम गाय | भूले नहिं उपकार को, तुझको शीश नवाय || -विनिता सुराना 'किरण'

झूला (मुक्तिका)

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    पींगे भरते झूले चलो आकाश छूले झूमे सखी सहेली दर्द सभी अब भूले Let the Swing rise high Let's touch the sky Come friends make merry Forget all woes we carry. -Vinita Surana 'Kiran'

अतीत

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यह कैसी ख़ामोशी, आ बैठी है तेरे मेरे दरमियान? रुसवा है शायद खुद से ही, सताती है बहुत. अबूझ पहेली सी लगती हैं, उलझाती है बहुत. ख़्वाबों से बोझिल हो चली है पलकें अब मेरी, न वो जाते है, न नींद मुझे आती है. अतीत से कुछ धुंधली सी परछाइयाँ चली आती है. कुछ अनकहे किस्से हैं कोशिश करती हूँ डायरी में लिखने की. जाने कहाँ लफ्ज़ हो जाते हैं गुम और रह जाती हैं बस कुछ टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें. कभी एक धुंधली सी आकृति उभर आती है, अपनी सी लगती हैं पर पहचान नहीं पाती और खो जाती हूँ खामोशी के अंधेरों में जो लम्बी सुरंग की तरह गहराते ही जाते हैं. सुनहरे अतीत की रोशन यादें भी नहीं चीर पाती इन अंधेरों को और लौट जाती है वे भी लुटी-पिटी सी मेरी डायरी के महकते पन्नों में जहाँ कैद है भीनी सी खुशबू मेरे अतीत की. -विनिता सुराना 'किरण'      

नीर (मुक्तक)

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आशीष है आभार है नीर जीवन का सार है इसे न व्यर्थ बहाना तुम यह सृष्टि का आधार है -विनिता सुराना 'किरण'

बाग़ (कुण्डलिया छंद)

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जोड़ो मन तुम बाग़ से, राखो पूरा ध्यान देख-देख कोपल नयी, माली करता मान माली करता मान, नहीं तुम इसे उजाड़ो दो तुम खिलने फूल, नहीं तुम कोपल तोड़ो चलो लगाओ पेड़, फ़र्ज़ से मुंह नहिं मोड़ो पेड़ गुणों की खान, पेड़ से जीवन जोड़ो -विनिता सुराना 'किरण'

माटी (मुक्तक)

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संत-वाणी बहु सुनी, पर ग्राही नहीं कोपल मनमोहक खिली, सराही नहीं माटी हुआ तन, माटी में हुआ लीन सम्पदा बहुरि जोड़ी, कछु लाही नहीं. -विनिता सुराना 'किरण'

दुआ (कविता)

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दूर देश को जाने वाले, संग ले जा तू दुआ मेरी, जीवन-संघर्ष में हर क्षण, कवच बन करे रक्षा तेरी| जो पथ में हो धूप कड़ी, छैया बन जाए दुआ मेरी, चुभे न गम के काँटे कभी, फूलो की हो शैय्या तेरी| तेरे हिस्से के सब अश्रु, पी लेगी ये दुआ मेरी, कामना यही करूँ सदा, फलें-फूलें शाखें तेरी| हौसलों के पंख मिले, उड़ान हो ऊँची तेरी, लौट आना सांझ को, राह देखेगी दुआ मेरी| -विनिता सुराना 'किरण'        

चन्दन (मुक्तक )

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ग्रहण का दाग सूरज को छिपा सकता नहीं काँटों का कफ़न फूल को मिटा सकता नहीं आहूत हो अग्नि में भी महकता हैं चन्दन विषम हो मार्ग, कर्मठ को डिगा सकता नहीं| *************************************** तेल, औषध, सुवास हैं चन्दन तिलक सुशोभित भाल हैं चन्दन पावन, पुनीत, तासीर शीतल चिता में जले, त्याग हैं चन्दन| -विनिता सुराना 'किरण'