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Showing posts from June, 2018

तुम इश्क़ हो !

वे तीन ख़ूबसूरत शब्द हमेशा खोखले से लगे मुझे, जो अनगिनत बार सुनकर भी एक अनगढ़ बांसुरी के अधूरे बिखरे से सुरों का आभास देते रहे ...कहने वाले की आंखों में न वह मासूमियत थी न कशिश उस इश्क़ की जो गाहे बगाहे मेरी डायरी के पन्नों को महकाता रहा, भिगोता रहा या फिर यूँ कहूँ कि मेरी सोच में डूबता उतरता रहा। एक दिवास्वप्न से ज्यादा कुछ था भी नहीं शायद तब उसका अस्तित्त्व और इसीलिए यायावर सी मैं इश्क़ को तलाशती रही ...कभी किताबों में, कभी गीतों में, कभी ख़्यालों के रेशमी जाल में उलझते-सुलझते , कभी बेचैन रात की उनींदी आँखों में करवट लेते ख़्वाबों में । फिर एक दिन तुम्हें गढ़ लिया मैंने ... हाँ 'तुम' ही तो थे जो मेरे तन्हा सफ़र में साथ चलते रहे, भीड़ में अकेलेपन का वो एहसास तुम्हारे मुस्कुराकर देखते ही छूमंतर हो जाया करता, तुम्हारे साथ हँसते-बोलते वक़्त गुज़र ही जाता पर फिर बेवक़्त टूटी नींद जाने कब भर देती मेरे मन को अंधेरे की परछाईयों से जो सुब्ह होने तक डराती रहती मुझे ।          कहीं किसी किताब में पढ़ा था कभी कि एक वक़्त ऐसा भी आता है जब कोई ख़्वाहिश न रहे, मन एकदम शांत हो जाए, कुछ भी अधूरा न लगे....

अपनी बात

सफ़र चाहे कोई भी हो , एक मोड़ पर यू-टर्न लेता है ! ज़िन्दगी का सफ़र भी कुछ ऐसा ही है । उम्र के एक मोड़ पर हम स्वयं जब पीछे मुड़ कर देखते हैं तो लगता है शायद हम कुछ और भी जोड़ सकते थे अपनी ज़िन्दगी में । वक़्त की राह पर पीछे लौटना तो मुमकिन नहीं होता परंतु फ़िर भी कुछ पगडंडियां ऐसी होती हैं, जो पुल बनाने का काम करती हैं ... हम कुछ ऐसे अवसर तलाशने लगते हैं जो वर्तमान में भी माज़ी से जोड़ देते हैं वो भी नए कलेवर में । ख़्वाब पुराने होते हैं पर रंग नए और यक़ीन कीजिये ये नए रंग भी सुखद अनुभूति देते हैं , नया हौसला देते हैं , नयी उड़ान देते हैं .. बस हमारे जागने भर की देर है !        बहुत बार कहा गया है माज़ी को पीछे छोड़कर ही भविष्य की ओर क़दम बढ़ सकते हैं , परंतु मेरी सोच ये है कि माज़ी को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करना ज्यादा अच्छा है क्योंकि वो अपूर्ण ख़्वाब या ख़्वाहिशें नए रूप-रंग में आ जाएँ तो ख़ुशी और संतुष्टि दोनों देंगी। ©विनीता सुराना 'किरण'

Be with me

Walk a few steps beside me Share a sunset may be Hold my hand for a while Let me capture your smile Did you ask, will that suffice? Well every wish has a price.. I'm prepared to pay all right Till i have you by my side. No promises, no wishes, no dreams either Just this moment until it loses into another ©Vinita Kiran

लोकतंत्र

दो उद्दंडी बालक उलझ गए किसी बात पर ...एक ने उकसाया तो दूसरे ने कीचड़ में धक्का दे गिरा दिया । फिर तीसरा आया कीचड़ वाले को उठाया और लगा मदद करने कीचड़ हटाने में ...ले आया एक बाल्टी पानी और उड़ेल दिया उस पर ...पर ये क्या पानी भी एक गंदले तालाब का था तो क्या हश्र होना था ? कीचड़ तो कीचड मिट्टी और मैला सब लपट गया । फिर जिसने देखा अपनी-अपनी राग अलापी...पंचायतें बैठी..बयानबाज़ी और छद्म फ़ैसले  भी ..फिर एक पंच ने सोचा और कहाँ मौका मिलेगा अपनी कुर्सी मजबूत करने का !!!! पंचायतों की ऐसी तैसी... अपन किस राजा से कम ? बघार दी अपनी जाकर बड़े शहर की अदालत में ...कीचड़ का क्या कहीं भी मिल जाए क्या कमी है भाई चाहे जहाँ फैलाओं ...लोकतंत्र है पूर्ण आज़ादी !!!! ©विनीता किरण

अनकहे एहसास

हाँ ! नहीं दे पाती अल्फ़ाज़ उन एहसासों को, जिन्हें शिद्दत से महसूस करती हूँ, किसी नाम की परिधि में नहीं बाँधना उस रिश्ते को, जो दिल से जुड़ा है, तुम्हारे और मेरे बीच कोई पुल नहीं चाहिए मुझे क्यूँकि अब किसी सफ़र में ज़ाया नहीं करना , वो थोडा सा वक़्त जिसकी मोहलत दी है ज़िन्दगी ने... आज और अभी चाहती हूँ विश्वास, एहसास और बस साथ तुम्हारा ! ©विनीता सुराना 'किरण'

क्षणिकाएँ

परिचय पहचान आदत जरुरत मुहब्बत इबादत ....... सफ़र तो यक़ीनन लम्बा होगा ! यूँ भी "आम" से "ख़ास" होना आसान कहाँ ? ******** हाँ जला दिये कल शाम होली में जितने भी थे शिक़वे-गिले तुझसे ऍ ज़िन्दगी ! चल आ आज गले मिलते हैं और रंग लेते हैं इक दूजे को दोस्ती के रंग में मुहब्बत के रंग में ! ******** साँझ ने खोला है घूँघट या सहर ने दस्तक दी है तेरे इंतज़ार में समय का हिसाब कब रखा है हमने ! ******** "ज़वाब" तुमने भी नहीं दिया... "सवाल" हम भी नहीं भूले ! जाने ये इन्तज़ार कब ख़त्म होगा ? या फ़िर किसी दिन जब "ज़वाब" आये, ये "सवाल" बस सवाल ही रह जाए ..... ********* उनींदी आँखों में उतरा ख़ूबसूरत सा ख़्वाब और जी उठा ये तन्हा मन रात गुज़री ...जैसे पलछिन, ख़ुमारी थी कुछ अज़ब सी जो सुबह तक तारी है मानो कह रही हो 'किरण', अब तुम्हारी बारी है ! ********* अज़ीब कश्मकश है ! कुछ दिल को नहीं भाता ... कुछ दिमाग़ को नहीं मंज़ूर कभी ज़ुबाँ ख़ामोशी ओढ़ लेती है तो कभी आँखों में किर्चियाँ चुभती हैं । सब मनचाहा नहीं होता ...