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Showing posts from March, 2020

इश्किया

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इश्क़ में डूबी नदी ने पूछा था, "तुम झरने से क्यों नहीं, आओ न पूरे वेग से और मिल जाओ न मुझमें ! सागर से हुए तो मेरा सफ़र कितना लंबा होगा....छूट जाऊंगी कितनी ही घाटियों में थोड़ी-थोड़ी, तुम तक पहुंचने में खो दूंगी अपनी चमक, घाट की मिट्टी के अंश लिपट गए तो तुम्हे परहेज़ तो न होगा मुझे आगोश में लेने में ?" "झरने सा हुआ तो मिल जाऊंगा तुम्हे पर क्या ठहर पाओगी तुम कहीं या मुझे साथ बहा ले जाओगी और कहीं जो मैं छूट गया तुमसे तो कहाँ जाऊंगा ? मैं सागर ही ठीक हूँ न तुम समा जाना और मैं ठहराव दूंगा तुम्हें अपने आगोश में .. मुझमें जो खार है वही उजला देगा तुम्हें और प्रेममय हुए तो कहाँ रहेगा कुछ अधूरा ... जितना भी छूटोगी उससे कहीं ज्यादा भर देगा प्रेम ... बस रास्ता कोई हो तुम्हारी मंज़िल मैं रहूं !" नदी अब भी सोच में है ... उसे तो आगाज़ से लेकर अंजाम तक बस उसी की ख़्वाहिश है तो झरना भी रहो न और सागर भी ... बोलो रहोगे न ?  #सुन_रहे_हो_न_तुम

प्रेम .... तलाश .... इंतज़ार

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तुमने कहा  तुम जीना चाहते हो प्रेम ! तलाशते रहे देह के उभारों में  धौकनी सी चलती तेज़ साँसों में तुम्हारे स्पर्श से सिंहरती पोरों में दबे होंठों की सिसकारियों में और फिर ज्वार उतरने के बाद  लौट गए रीते ही  काश कि थोड़ा रुक कर तलाशा होता  तन्हा रातों की बेचैनियों में करवटों में , सिलवटों में  चुपके से ढुलकते अश्क़ों में  भीगे तकिए पर उभर आए चकतों में और सबसे ज्यादा मेरे 'इंतज़ार' में ... #सुन_रहे_हो_न_तुम

वो हमारा असर था

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          आमने-सामने बैठे हम वक़्त के पन्ने पलट रहे थे, कितने लम्हे गुज़रे हमारे बीच से, कभी आंखें नम हुई तो कभी शब्द अटक गए मगर कितना कुछ था जो कह कर भी अधूरा था और अनकहा भी सुन लिया गया .. तुम्हें बोलते हुए देख रही थी और जाने कितने ही शब्द इधर-उधर फिसल रहे थे क्योंकि कानों से ज्यादा प्यास आंखों में थी जो तुम्हारे अक्स को पी लेना चाहती थीं।            वो जब तुमने मेनू कार्ड की आड़ में धीरे से मेरी उंगलियों के बीच अपनी उंगलियाँ फॅसा कर हौले से हथेली पर दवाब बनाया तो लगा शायद ये लम्हे पहले भी जीये हैं हमने... तुम्हारी नम हथेली को अपनी हथेली में बांधे पूछा था मैंने, "ऐसा हमेशा होता है या मेरा असर है ?"  "तुम्हारा ही असर है बेशक़ !" मुस्कुराती आंखों से तुमने कहा था             पहला कौर तुम्हें खिलाना, उंगलियों की पोरों का तुम्हारे लबों से स्पर्श होना, न जाने कितने अहसास जिला दिए थे उस मासूम स्पर्श ने .... फिर तुम अपने हाथों से खिलाते रहे और मैं हर ग्रास के साथ भूलती गयी हर उस चीज़ का स्वाद जो उस दिन से पहले खायी थी। "वो तुम्हारा असर था बेशक़ !"

तुम तुमसे ही लगे

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          कदमों से भी तेज धड़कनें और उनसे भी तेज़ नज़रों से भीड़ को चीरती बढ़ी जा रही थी तुम्हारी ओर ... बेचैनी थी तुम्हें पहली बार देखने की और उधेड़बुन में उलझा हुआ था मन कि जाने क्या प्रतिक्रिया होगी हम दोनों की एक दूसरे को देख कर ... पहली मुलाकात आख़िरी होगी या पूरी होगी तलाश उस हमसफर की जिसे मन ने पहचाना था बिन देखे, बिन जाने ?             दूर कोई पीठ किये खड़ा था और मन उछाल मार गले में आ अटका, सोचा पुकार लूं पर आवाज़ तो जैसे मन की गिरफ्त में बेबस सी ठिठक गयी और उंगलियां टच स्क्रीन पर हरकत में आयीं .. हेलो के साथ जो वो पलटा तो लगा एक बारगी वक़्त भी ठिठक गया  "चैक कर रही थी मैं ही हूँ ?" , हँसते हुए बोला था तुमने और जाने क्या जवाब दिया मैंने याद नहीं बस इतना भर कह पायी "तुम्हारी तस्वीर तुम्हारे साथ इंसाफ नहीं करती.." तुमने शरारत से एक आंख दबायी और मुस्कुरा दिए । इतने करीब बैठे थे हम पर जैसे कुछ इंच की दूरी भी हमारे घरों की 16 किलोमीटर की दूरी से बहुत ज्यादा थी, जिसे पाटने में पूरे 40 मिनट लगे थे मुझे उस भारी ट्रैफिक वाली सड़क पर .. उस पल तुम्हें छ

तुमसे मिलकर रोना भी अच्छा लगता है

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"ये तुम बात करते-करते रोने क्यों लगती हो ? जब साथ होती हो तो कुछ कर सकता हूँ उंगलियों से पोछ भी सकता हूँ और लबों से पी भी सकता हूँ पर ये जब दूर फ़ोन पर रोती हो तो क्या करूँ यार ?" और बरबस रोते-रोते मुस्कुराने लगती है वो लड़की उन खूबसूरत लम्हों को याद करके जब वो आखिरी बार रोयी थी उसकी बाहों में .. कुछ लोगों का साथ खुशी और आंसू दोनों लेकर आता है पर मजे की बात ये कि उन्हें लगता है आंसू नहीं आने चाहिए जब वो साथ हैं ... अब कोई उन्हें ये कैसे समझाए कि उस खुशी के क्या मायने जिसके साथ आंसू गलबहियाँ न करें !  "तुम्हारा साथ और ये खारी बरसात सुकूँ देते हैं, खुशी का प्याला छलकता है तो इन आंसुओं का अल्कोहल कंटेंट तुम्हारी बियर से कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है 😋" #सुन_रहे_हो_न_तुम

प्रेम में 'तुम' हो जाना

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प्रेम करने से कहीं बेहतर है प्रेम में होना  जो प्रेम में है वो निश्चय ही अधिक सरल होगा  सरलता भले ही भावुक बना दे पर निष्ठुर नहीं बनने देती  तभी तो विध्वंसी युद्ध के मध्य भी पनपते हैं विशुद्ध प्रेम  सीमारहित और अकल्पनीय !  **** तुम प्रेम करना चाहते हो पर मैं तो प्रेम को जीती हूँ  तुम्हें तलाश रहती है उन अंतरंग लम्हों की और मैं सोच कर ही करीब आ जाती हूँ तुम्हारे  मेरे लिए प्रेम को जीना उतना ही आसान है जितना कठिन है तुम्हें ये समझा पाना कि प्रेम करने का प्रयास ही प्रेम की नमी सोख लेता है । **** #सुन_रहे_हो_न_तुम