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अलविदा

"साधना तुम रुकोगी नहीं, मिलना नहीं चाहती उनसे जो सोनू को अपने परिवार में शामिल करने जा रहे ?", बालिका गृह की संचालिका राधिका ने कुर्सी से उठती हुई साधना से पूछा, हालांकि अच्छे से जानती थी साधना की प्रतिक्रिया क्या होगी । "नहीं राधिका कुछ जरूरी काम है, मुझे जाना होगा", कहते हुए साधना तेजी से बाहर निकल गयी । दरवाज़े के बाहर आकर ठिठकी साधना की आंखों के आगे दो महीने पहले का वो वाकया किसी चलचित्र की तरह गुज़र गया, जब रेड लाइट एरिया से 6 वर्षीय मासूम सोनू को उसने पुलिस की मदद से बचाया था। उसके परिवार की कोई जानकारी न मिलने के कारण कोर्ट ने बालिका गृह के सुपुर्द कर दिया सोनू को और उसका सारा खर्च तब तक साधना ने अपने एन जी ओ से स्पांसर किया था जब तक कि कोई परिवार उसे गोद न ले ले । जाने कैसी कशिश थी उस मासूम में कि पिछली कुछ मुलाकातों में साधना उससे जुड़ती चली गयी और आज जब उसे गोद लेने कोई आ रहा है तो भारी मन से उस मासूम को आख़िरी बार देखने चली आयी थी । फिर भी उसे जाते हुए अलविदा कहने की हिम्मत नहीं जुटा पायी थी। यूँ भी उसके लिए अलविदा कहना कभी आसान नहीं रहा बीस साल पहले की उस