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Showing posts from November, 2020

तुम थे तो ...

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कुछ लम्हे छूटे से, कुछ बातें अधूरी सी तेरे बिन जो गुज़री, तमाम रातें सूनी सी ख़लिश सी रहती है अब दिल में हर पल हर दिन है बेवजह, हर शाम बिखरी सी तन्हा ही अच्छे थे, न आस थी न उम्मीद अब हर पल, हर सु है फ़क़त बेचैनी सी तेरे आने से लेकर तेरे छोड़कर जाने तक पसरी हैं राह में बेजान ख़्वाहिशें टूटी सी बेशक़ तेरी ज़िन्दगी में शामिल नहीं मगर  माँगते हैं दुआ तुझे महसूस न हो कमी सी 💖किरण

हमारी यादों की गुल्लक

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वक़्त गुज़रता गया, कभी नहीं रुका, तब भी नहीं जब हम अलग हो रहे थे, तब भी नहीं जब तुझे आख़िरी बार गले लगा कर , बिना पीछे मुड़े मैं आगे बढ़ गयी थी, अगर पीछे मुड़ कर तेरी आँखों में देख लिया होता तो जा नहीं पाती न ! पर क्या वाकई हम अलग हो पाए, वो जो लम्हे अब भी कहीं ज़िंदा हैं, कुछ तेरी संजो कर रखी तस्वीरों में, कुछ हमारी याददाश्त में, वो लम्हे हमें जुदा कहाँ होने देते हैं? हम तो मौजूद हैं एक दूसरे की धड़कनों में, ये दूरियां, ये दुनिया, ये मजबूरियां कैसे अलग कर पाएंगी हमें ? जीते जी भी नहीं और उसके बाद भी नहीं क्योंकि हम फिर लौटेंगे पूरी करने को 'हमारी अधूरी कहानी' !               हाँ वही कहानी जिसकी शुरुआत कहीं हमारे तसव्वुर में न जाने कबसे थी, तेरे उस सुबह के ख़्वाब में, जब मैं लाल-पीली बॉर्डर वाली साड़ी में तुझे जगाने आती थी, तेरे न उठने पर तेरी उँगली को गरम चाय में डुबो देती थी और तू जाग कर मुझे खोजने लगता था अपने आस-पास ... मेरे ख़्वाब भी तो बेचैन किया करते थे मुझे जब उस पहचाने से स्पर्श को अपनी रूह तक महसूस किया करती थी, बिना ये जाने कि मैं कब मिल पाऊंगी अपने उस अजनबी हमसफ़र स

तेरे-मेरे ख़्वाब

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कभी-कभी लगता है मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई कि तुझे तेरे ख़्वाबों से मिलवाना चाहा, तेरी काबिलियत से तुझे रूबरू करवाया .. न ये ख़्वाब देखता न इसके टूटने का दर्द होता ! मुझसे अनजाने ही सही गुनाह हो गया, तुझे अनजाने ही सही दर्द दे बैठी, कभी न मिटने वाला दर्द जो वक़्त के साथ शायद अपने निशान तो मिटा देगा पर एक टीस तेरे मन के कौने में हमेशा चुभती रहेगी ..               तुझे यूँ खुद से अनजाना सा, अपनी ही खुशी से रूठा हुआ सा देखती हूँ तो बहुत रोता है मन, तेरी वो पुरानी खिलखिलाती तस्वीरें देख अनायास ही भीग जाती हैं आंखें, हाँ वही आंखें जो तेरे साथ तेरे ख़्वाब साझा देखा करती थीं !                 तेरी गुनाहगार हूँ मैं, क्या कभी मुक्ति मिलेगी मुझे इस बोझ से बाबू ? क्या कभी वो महकते ख़्वाब फिर देख पाऊंगी तेरी आँखों में झिलमिलाते हुए ? यकीन कर उस दिन मुझसे ज्यादा खुशकिस्मत कोई और नहीं होगा 💖 🎵🎶🎼 कबसे हैं आके रुके बादल इन आखों पे उस रोज़ रिहा होंगे जिस दिन तुम आओगे छा जाए ख़ामोशी दुनिया के सवालों पे सब दर्द ज़ुबां होंगे जिस दिन तुम आओगे...  🎵🎶🎼 #सुन_रहे_हो_न_तुम #मीरा_के_ख़त

इश्क़ की पैमाइश

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इश्क़ क़ामिल होता नहीं है फ़क़त ख़्वाहिश से, एक अहसास है बिखर जाता है आज़माइश से। एक पल में सिमट जाए, बुलबुला नहीं सतह का समंदर सी गहराई नपती नहीं किसी पैमाइश से।    💖🌹किरण

प्यार की तरह

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अपने ख़्यालों के परिंदों को हौले से छोड़कर आसमान में, दूर ...बहुत दूर जाते अक़्सर देखना धीरे-धीरे अल्फ़ाज़ में ढलकर फिर उन्हें लौटते भी देखना कविताओं, कहानियों की शक़्ल में !  यही से तो आगाज़ होगा उस सफ़र का जो तय करेगा हर उस रिश्ते का ताना-बाना जिसे गढ़ने तुम्हें भेजा गया दुनिया में यही वह सफ़र होगा  जो ख़ुद से ख़ुद के रिश्ते को अंजाम तक पहुंचा दे शायद... इस सफ़र के तज़ुर्बों पर फिर कई किताबें लिखी जाएंगी उनमें उभरे कुछ अल्फ़ाज़ होंगे  जो वज़्न में भले ही ज़ियादा हों पर सुनो, सिर्फ एक ही लफ्ज़ है, जो उन सारे बड़े और बोझिल से लगते अल्फ़ाज़ को सही मायने देता है  'प्यार' परिंदों की उड़ान भी परों के बिना संभव कहाँ ? हाँ वही 'पर' जो नाज़ुक और हल्के हों बिल्कुल 'प्यार' की तरह ! ❤️🌹 किरण

डायरी के सुर्ख़ पन्ने

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'तुम' महज़ एक अहसास नहीं हो ... लफ़्ज़ दर लफ़्ज़  लिखती हूँ तुम्हें अपने मन के कोरे पन्ने पर, तुम्हारी महक  ठंडी हवा सी सरसराती घुल जाती है मेरी साँसों में और पिघलने लगते हैं जज़्बात... अक़्सर उँगलियों में कंपन सा महसूस होता है जैसे स्पर्श किया हो तुम्हें, कितना शोर करती हैं तब धड़कनें भी जैसे तुमने छेड़े हो तार कहीं मेरे भीतर, ज़िद करने लगती हैं आँखें  तुम्हें एक झलक देखने की और मैं डूबती-उतरती सी  अक्सर उकेरती हूँ तुम्हारा अक़्स अपनी कल्पना में, अपनी आधी नींद के ख़्वाब में और जीती हूँ तुम्हें, सिर्फ़ तुम्हें, हाँ ...सिर्फ़ तुम्हें ! ❤️🌹किरण #डायरी_के_सुर्ख़_पन्ने

वही सपना, आधा सा अधूरा सा

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मीरा की गोद में सर रखकर लेटे उसी की डायरी के पन्ने पलटते उसने पूछा , "क्या कभी हमारी कहानी लिखोगी ?"  "उहूँ , क्यों लिखना है उसे जो हम जी रहे, तुम जीते हो मेरे आखर-आखर में और ये सिर्फ हमारे हैं। कहानियां, किस्सों में तो वो जीया करते हैं जो साथ नहीं होते, हम तो हमेशा साथ रहेंगे न ?" मीरा ने अपनी आंखों में सारी चाहत लिए कहा "हाँ हमेशा साथ रहेंगे और एक दिन हम कुकी और धनु को हमारी कहानी सुनाएंगे.." उसने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा । "अब ये कुकी और धनु कौन हैं ? नए दोस्त हैं तुम्हारे ? मुझे बताया नहीं कभी, कब बने, कहाँ मिले?" "अरे मेरी झल्ली ज़रा विराम लो ! ये नए दोस्त नहीं हमारी बेटी और बेटा हैं, होने वाले ..." , मीरा की हथेली चूमते हुए वो हँस पड़ा  "धत्त ! ब्याह नहीं हुआ और तुमने बच्चों के नाम तक रख लिए, वो भी बिना मुझसे सलाह किये .." ज़ोर से हँस दी मीरा  आसमान से एक बूंद आकर गिरी मीरा के चेहरे पर और फिर फिसल कर सीधे उसकी गोद में लेटे उसके चेहरे पर ... झट से उँगली में लेकर होंठो से लगा लिया उस मीठी बूंद को उसने । "ह

वो बेवफ़ा रात और बरसात

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भीगी सी कल की रात  वो शबनमी सी बरसात भीनी सी खुशबू तेरे संग बुनी यादों की, हमारे सुर्ख़ जज़्बातों की, कहे-अनकहे वादों की, उमड़ते-घुमड़ते अहसासों की.... बैरन इस सुबह की सरगोशियों में फिर समेट रही हूँ हमेशा की तरह किर्चियाँ उन अधूरे से ख़्वाबों की... क्या शिक़वा कैसी शिक़ायत करूँ वो रात ही थी बेवफ़ा, जो सुबह होते ही दगा दे गयी ! ❤️🌹किरण

उलझे से तुम

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अक़्सर यहाँ-वहाँ उलझे से नज़र आते हो तुम! पर सुनो, कोई शिकायत नहीं है ये  तुम ऐसे ही पसंद हो मुझे। यूँ रेशा-रेशा तुम्हें सुलझाते, तुम्हीं में उलझ जाती हूँ अक़्सर और सुलझने की कोशिश में वो तुम्हारा करीब आ जाना मेरे मन को मेरे शब्दों में पढ़ लेना अहसासों के समंदर में डूबकर चंद लम्हों के लिए ही सही हमारा एक दूसरे में खो जाना .. बस यही कश्मकश तो साँसें देती है  हमारी बेलौस मुहब्बत को ! ❤️🌹 किरण

मगर कहा भी नहीं

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कुछ कहना था मगर कहा भी नहीं। बाकी मगर कुछ रहा भी नहीं। जो तुझ से थे वाबस्ता, उन लम्हों में तू रहा भी नहीं। हर शाम मल्हम सी लगी यूँ तो, जाने क्यों कोई ज़ख्म भरा भी नहीं। वो साझा रातें और हमारी बातें, वो बेचैन नींदें, ख़्वाबों की सौगातें, सब अपनी ही तो थी मगर जाने क्यों अपनी सी लगीं भी नहीं। तुझे मिलने से ज्यादा खोने का डर तारी रहा। तू मिला तो बेशक़ मुझे पर मेरा रहा भी नहीं। तू हवा है, तू ख़ुशबू है, तू हर सु है, साँसों में गूंजता रहा पर थमा भी नहीं। बंद आंखों से देखती रही तेरा अक्स खुली जो आंखें तू साथ रहा भी नहीं। 💖 किरण

आन्या की डायरी

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आन्या उकेर रही थी अपने ख़्याल डायरी में .. ये किस मोड़ पर मिले हो तुम जब आदत हो चली थी तन्हाई की, ख़ुद से ख़ुद की रुसवाई की, चुपके से सरक आती  खामोशियों की, बेख़ौफ़ लिपटती  परछाईयों की.... फिर ये कैसी सरसराहट है मन के गलियारों में, जैसे दस्तक दी हो  फिर एक अहसास ने चुपके से ... जी चाहता है पुकार लूँ तुम्हें पर क्या तुम सुन पाओगे, मेरे ख़ामोश लफ़्ज़ ? अगर हाँ ... तो चले आओ न, जाने कबसे पुकारती हैं तुम्हें  मेरी खामोशियाँ, जाने कबसे इंतज़ार में हैं  मेरे साथ ये परछाइयाँ भी, जाने कितने लम्हे राह देखते हैं जो बिन जीये ही कट गए... अम्बर ने चुपके से पढ़ लिया और बेख़याली में खोई आन्या के कान में धीरे से फुसफुसाया.. "सुनो, ये हिसाब किताब फिर कर लेंगे इसमें उलझ कर मत भूल जाना  कि आज वादा है मुझसे मिलने का .. वहाँ जहाँ दूर तक बस ठंडी रेत का समंदर है तन्हाइयों का संगीत है चांदनी ने सजाया है हमारा आशियाँ और बादलों से लुकाछुपी खेलते तारे  कबसे जाग रहे हैं हमें शुभ रात्रि कहने के लिए ! बोलो आओगी न ?" 💖💖💖😍 #सुन_रहे_हो_न_तुम

रब से की हुई गुज़ारिश हो

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रब से की गई गुज़ारिश, वो मेरे दिल का सुकून है। उससे मिलने की ख़्वाहिश, संग चलने का जुनून है। उसकी बातों में मिठास, हँसी में अजब खनक है। खुद को कम आंकने की, लेकिन बहुत सनक है। धड़कने का सबब वही, मेरे दिल की ख़ुराक है। ज़िन्दगी उसके बिना न भरने वाला सुराख है। कबूल हुई कोई दुआ, उसका मिलना रहमत है। क्या लिखूं अब और  दिलबर है, मेरी चाहत है। 💖🌹किरण

मुक़म्मल इश्क़

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सुरमे वाले कटीले नैन उभरे हुए कपोल सुतवाँ नाक में झूलती नथ लजीले लबों पर अधखिली मुस्कान  कांधों पर झूलती बलखाती लटें साँचे में ढला इकहरा बदन... वो गढ़ रहा था एक मूरत प्यारी सी जो अक्सर दस्तक दिया करती थी  उसके ख़्वाबों की चौखट पर, चुपके से चुरा लेती थी नींद  और छोड़ जाती थी एक अतृप्त प्यास ! दीवाना सा खोया था  अपने मनमोहक सृजन में  कि सहसा एक स्पर्श, एक अहसास, साकार हो गयी थी उसकी कल्पना, एक लम्हा जो जी उठा था  और भर गया उसका अधूरापन ... अगले दिन लोगों को दिखा उसका हुनर, उसकी कला  सराहा गया उसका कौशल , उसका फ़न एक जीवंत कलाकृति को गढ़ने के लिए.. पर दीवाना मुस्कुरा रहा था उनकी नासमझी पर  क्यूंकि मुकम्मल कब होता है कोई सृजन 'इश्क़' के बिना ! 💖🌹किरण

फिर वही ख़्वाब, वही अधूरे जज़्बात

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गलियारे के दूसरे छोर पर बरामदे में लगे बड़े से झूले पर बहुत करीब मगर विपरीत दिशा में मुंह किये बैठे थे दोनों, उसका सिर उसके साथी के कंधे पर टिका हुआ और उसके घने बालों की लटें उसके चेहरे पर बिखरी हुई थीं। वो हौले-हौले उसके बालों को सहलाते कुछ कह रहा था कान में, जिसे सुन उसके लबों पर मुस्कान खिल उठी थी। धीरे-धीरे झूले के साथ लहरते वो दोनों एक दूसरे में खोए हुए थे कि तभी किसी ने पुकारा "मीरा..ओ मीरा!" वही जानी पहचानी आवाज़, शायद माँ ने पुकारा था और मीरा झट से उठ कर जाने को हुई थी अंदर, जहाँ से आवाज़ आयी थी, कि साथी ने बाँह थाम कर रोक लिया और उस पल दोनों के चेहरों में बस इंच भर की ही दूरी थी और साँसों की छुअन से धड़कनें बहुत तेज़ हो चुकी थी। एक पल को वक़्त शायद ठहर गया और इससे पहले कि वो पूरी तरह खो जाते उस लम्हे में, एक बार फिर किसी ने पुकारा था उसका नाम .. "बाबू , जाने दो न ..." "जल्दी आना.." "हम्म..."  वो बेमन से हाथ छुड़ा गलियारे से होते हुए बड़े कमरे की ओर दौड़ पड़ी थी। जानती थी उसके साथी की नजरें पीछा कर रही थीं उसका। उस अधूरे छूटे लम्हे की क

अगली मुलाकात

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मुझे नहीं आता कविता लिखना नहीं कहती मैं कोई ग़ज़ल  न ही कोई नज़्म उकेरती हूँ कागज़ पर  मैं नहीं ढालती सुरों की बंदिश पर कोई गीत  ये सब तो बस एक ज़रिया रहे हैं, आज भी हैं और हमेशा रहेंगे, तुमसे बात करने का, तुम्हें महसूस करने का, तुमसे मिलने के बहाने ख़ुद से मिलने का, तुम्हारे साथ हर वो अहसास जीने का, जो मेरे मन से तुम्हारे मन को जोड़ते हैं, जिन्हें नहीं छीन सके कभी ये जिस्मों के फ़ासले ... अगर तुमसे बात न हो तो ये लफ्ज़ भी  आंख चुरा कर निकल जाते हैं मेरे करीब से मैं चाह कर भी नहीं समेट पाती इन्हें अपनी हथेलियों में बस दूर जाते हुए देखती हूँ चुपके से और इंतज़ार करती हूं  तुमसे अगली मुलाकात का ! 💖🌹 किरण

हमारी बातें

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"घंटों तक बतिया कर भी हमारी बातें जैसे हमेशा अधूरी ही रह जाती हैं, कितना कुछ होता है कहने को पर तुम्हारे साथ का ये वक़्त कैसे फ़ुर्र हो जाता । शायद यही वजह है कि जब तुमसे गुड नाइट कहकर सोने जाता हूँ तो हमारी बातचीत मेरी नींद में भी अनवरत जारी ही रहती है और जब आँख खुलती है तो हैरानी से देखता हूँ मेरा फ़ोन तो मेरी पहुँच की ज़द में भी नहीं तो फिर मैं कैसे बतिया रहा था तुमसे ? फिर सारा दिन इन अधूरी बातों में जाने कितनी बातें और जोड़ता रहता हूँ तुमसे अगली मुलाक़ात तक ..."  तुम्हारी बात सुनकर मुस्कराने लगती हूँ मैं क्योंकि क्या बताऊँ तुम्हें कि बहुत सी और बातों की तरह ये भी तो समानता है हमारे बीच कि यही सब तो मेरे साथ होता है हर रात ... हमारी गुफ़्तगू सुबह आंख खुलने तक यूँ ही जारी रहती है ख़्वाब में जो हक़ीक़त से कम भी नहीं लगता । तुम्हें हर पल महसूस करना जैसे मेरी दिनचर्या में शुमार हो चुका है, जिसमें कभी भी कोई बदलाव नहीं हुआ । "हाँ तो क्यों होनी हैं पूरी, मैं तो चाहती हूँ यूँ ही तुम्हें सुनती रहूँ, देखती रहूँ तुम्हारे होंठों की हरकत, आंखों की चमक जिसमें घुल जाती है तुम्हा

'तुम'और 'हम'

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तुमसे मिलकर लगा कुछ तो था जो अधूरा था ... जब से आ कर गए तुम तो लगता था रीत गयी। जब आये नहीं थे तो भरा सा रहता था मन तुम्हारे ख़्याल से जो गए तो मन में खालीपन और बाहर पसरी तन्हाई थी ! तब भी खुश थी मैं, जब नहीं थे पास तुम क्योंकि इंतज़ार था तुम्हारे आने का ... जो गए तो पास भी नहीं, इंतज़ार भी नहीं,  आस भी नहीं और सहेजने को याद भी नहीं ! ये कैसी मोहब्बत थी कि खुद से अजनबी हो गयी? इससे अच्छी तो तन्हाई थी ... जहाँ भी जाती साथ चली आती,  अंधेरों में भी साथ जैसे परछाई थी ! और फिर एक दिन अचानक यूँ ही चले आये तुम, जैसे हमेशा से यहीं कहीं थे मेरे आस-पास। वो इंतज़ार, वो बेक़रारी, वो तड़प, तुमसे मिलने की, जैसे कोरी कल्पना से लगने लगे। चारों ओर फैली तन्हाई की धुंध भी, तुम्हारे प्यार की तपिश पाकर छटने लगी। तुमसे हर मुलाक़ात लम्हा दो लम्हा सी, दिन सरपट दौड़ने और रात उड़ने लगी। क्या सचमुच हम बिछड़े थे कभी, या तुम मुझमें ही बसे थे हमेशा मेरी धड़कन, मेरी सांस, मेरी ज़िंदगी बनकर? बेशक़ एक अधूरा सा ख़्वाब है मिलना हमारा,  मगर तुम साथ हो तो हर अधूरा ख़्वाब भी पूरा है। 💓 किरण

जब आओगे तुम

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हैरत की बात है न ! या शायद नहीं भी... तुम मेरी वही नम आंखों वाली भीगी हँसी देखना चाहते हो जिसे अरसा हुआ कहीं दबे, दम तोड़े पर मैं तुम्हारी हँसी के पीछे छुपे वो आँसू देखना चाहती हूं  जो अब भी कहीं बचे रह गए हैं थोड़े से जो अब तक पलकों का बांध तोड़  बाहर नहीं निकले ये भी नहीं कह सकती चलो सौदा कर लें... जानती हूँ दोनों का आना मुमकिन नहीं उस दिन तक जब तक कि वक़्त के सहरा को पार कर  हम आमने-सामने न हों, हमारे अश्क़ों को अब और तन्हाई मंज़ूर जो नहीं ! 💖किरण

ये तेरा असर है

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मुस्कराती है दुनिया मेरी, ये उसकी बातों का असर है।  मेरी चाहत, मेरे जुनून, मेरे इश्क़ से अब भी वो बेख़बर है। फ़क़त इक नज़र से पिघलता है, बेक़रार होकर, मगर  उसे लगता है वो कूल डूड है, उसका चट्टान सा जिगर है। उसकी आरज़ू है मुझे बेइंतेहा, चाहतें उसकी भी बेशुमार, चाहे भी तो रोक नहीं सकते, ये सैलाब नहीं समंदर है। वो जो मीठा सा दर्द देता है इश्क़, उसमें असर है इतना, बेचैन होते है तन-मन और रूह तक गहरे उतरता क़हर है। उसकी हल्की सी छुअन, तपिश बढ़ा देती है इस क़दर, पारा चढ़ता ही जाता है, ये कैसा कमबख़्त ज्वर है। 💖 किरण  #ग़ज़ल_नहीं_बस_तख़य्युल_भर

सौगात

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तेरी याद, तेरा अहसास , चंद खूबसूरत लम्हात ... फ़क़त यही तो है तेरे साथ गुज़रे वक़्त की सौगात ! 💞 💖Kiran

'तुम' से 'तुम' तक

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उलझी हुई कुछ गुत्थियां, अस्त-व्यस्त से कुछ ख़्वाब, आहटें कुछ पहचानी, कुछ अजनबी सी,  शिक़वे, शिकायतें और कुछ उलाहने कभी नियति से, कभी वक़्त से, कभी ख़ुद से  सर्द सी शाम और कोहरे का लिबास ओढ़े, अनजानी सी गलियों से गुज़रती ज़िन्दगी... कभी सोचा नहीं था इस धुंध को चीरते, मेरे ख़्यालों के आसमाँ पर, कुछ ख़्वाब फिर उड़ान भरेंगे। तुम सर्च लाइट लिए आओगे  और अकस्मात खोज लोगे मुझे, या फिर क़बूल हुई है शिद्दत से की हुई कोई दुआ ! फिर एक कहानी लिखेगी नियति, जी उठेंगे कुछ सोए अहसास सिहरन होगी लफ़्ज़ों में और  कुछ टूटी कड़ियाँ जुड़ेंगी, झिलमिलायेंगे कितने ही ख़्वाब नए-पुराने, और अपनी ही लगाई बंदिशों से अलग  रस्मो-रिवाज़ों, रिश्तों की भीड़ से दूर  कहीं बहुत दूर, खोज लेंगे एक ठिकाना और तिनका-तिनका मोहब्बत से एक नई-नवेली दुनिया रचेंगे  'हम-तुम' ! 💖किरण

माला तेरे नाम की

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वादा था ख़ुद से  मेरे हर लफ्ज़ में मौजूद रहोगे तुम ! मगर अहसास समन्दर हो गए,  और अल्फ़ाज़ डूब कर खो गए। पुरकशिश हैं तुम्हारी यादें इतनी, कि ढूंढ लाती है मोतियों की तरह  चंद लफ्ज़ मेरे, उस गहरे समन्दर से भी तब कहीं जाकर एक माला पिरोती हूँ, तुम्हारे नाम की ! ❤️❤️ किरण