बिरादरी (कहानी)
बिरादरी हर रोज की तरह शाम को बच्चों को कंपाउंड के पार्क में लेकर आई रागिनी ने अभी पहला ही चक्कर लगाना शुरू किया था कि सामने से आती हुई शोभना को देख कदम ठिठक गए | क्या ये सचमुच वो ही शोभना है जो पूरी बिल्डिंग में चहकती फिरती थी ? रोज नए-नए कपडे पहनना, सजना-संवरना, बच्चों के संग बच्ची बन जाना और बड़ों के साथ भी हँसी-ठिठोली ... पूरी बिल्डिंग की रौनक थी शोभना पर आज जिस शोभना को रागिनी देख रही थी वो तो उसकी परछाई मात्र है | सादा सा सलवटों भरा सलवार कमीज़, रूखे, बिखरे बाल, मुरझाया सा चेहरा, बुझी हुई आँखें ... रागिनी को देख वो एक फीकी सी मुस्कान बिखेर बिना कुछ कहे आगे बढ़ गयी | दो महीने पहले की ही तो बात थी, जब दोपहर में बच्चों को स्कूल बस से लेकर लौटते वक़्त रास्ते में शोभना को एक लड़के के साथ मोटरसाइकिल पर देखा था, बिल्डिंग से थोड़ी दूर उतर गयी थी शोभना और फुर्ती से बिल्डिंग की लिफ्ट में घुस गयी थी | दो-तीन दिन बाद ही किसी ने बताया शोभना की सगाई हो गयी, 10 दिन के भीतर ही शादी थी, ऐन शादी के एक दिन पहले वही मोटरसाइकिल वाला लड़का एक बुजुर्ग दम्पति के साथ आया था शोभना के घर, कुछ ऊँची आव