श्वेत-श्याम
"मुझे बस दो ही रंगों से लगाव था ...काला और सफ़ेद ... पर हाँ जब माँ ज़िद करती तो नीला शर्ट ले लिया करता मगर इनसे इतर कभी कोई रंग न लिया ।" उसने कहा मैंने तपाक से सवाल दाग दिया, "अच्छा ! मगर बाकी रंगों से बेरुख़ी क्यों ? सोचो अगर सारी दुनिया श्वेत-श्याम ही होती तो क्या इतनी ख़ूबसूरत होती ?" "तो तुम्हें लगता है ये सारी क़ायनात रंगों से सजी है इसीलिए सुन्दर है ? कभी धुंध में रंगों को ढूंढना या रात में बिखरी चाँदनी में ... अक़्सर मेरे स्कैच सफ़ेद कोरे कागज़ पर पेंसिल से उकेरे हुए आड़ी-तिरछी रेखाओं के जाल से अधिक कुछ नहीं रहे मगर तुमने कितने एहसास पढ़ लिए उनमें और शब्दों में ढाल दिया । तुमने कभी उनमें रंग भरने को नहीं कहा मुझे ... तुम्हें भी तो आम लड़कियों की तरह रंग-बिरंगी लीपा-पोती पसंद नहीं है न ? न कभी नाख़ून रंगते देखा तुम्हें न लिपस्टिक होंठों पर फिर भी जब एक बारगी नज़र पड़ती, हटाने को जी नहीं करता । हाँ तुम सब रंग पहनती हो और तुम पर सभी फबते भी होंगे मगर यक़ीन मानो तुम्हारे वस्त्रों पर एक सरसरी निगाह भर डालकर मेरी आँखें बस तुम्हारे हिलते होंठों पर और कान तुम्हारी मीठी आवा