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Showing posts from August, 2013

ग़ज़ल (3)

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कभी मसरूफ़ तुम, बेरुख हम कहीं थे सितम पर वक़्त के भी कम नहीं थे रुके है आज भी उस मोड़ पर हम मिले तुम और हम शायद यहीं थे कभी देखा न तूने तो पलटकर निशाँ वरना हमारे भी वहीं थे गिला क्या अब करें तुमसे सितमगर उजाले ही मुकद्दर में नहीं थे चराग़े रौशनी थी गुल कभी तो कभी रोशन सितारे भी नहीं थे   गिरी बिजली जहाँ थी टूट कर कल हमारे आशियाने भी वहीं थे -विनिता सुराना  'किरण'

ग़ज़ल (2)

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सुनो साथी हवा क्या गुनगुनाए फिज़ा भी साथ में जब सुर लगाए. पपीहे ने पुकारा है, कहाँ हो चले आओ कि बूंदें भी जलाए   कटे दिन बेकरारी में अभी तक   कि अब तो चाँदनी भी है सताए. लगे फीकी रंगोली चौक में अब रंगों के कौन अब मेले सजाए. उठे है हूक सी दिल में कभी तो विरह के गीत जब कोयल सुनाए. लगाया डाल पर झूला सखी ने सभी झूले, मगर मुझको न भाए. नहीं अब बहलता मन, ज़िक्र से भी नहीं तुम साथ तो सब है पराए. -विनिता सुराना 'किरण'

Change

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There's so much more to her Than you'll ever see, A naive girl you've known And loved her may be. She is no more now, Only a shadow of that naivety Surface sometimes When she is alone. She is bold and beautiful As she sees herself in her mirror, A mirror with a beautiful golden lining Which adds light to her face, Every time she watches her reflection in it. It hides all the lines and blemishes, Age and time seems to have left on her face. She floats in her haven with her infant wings, Rejuvenated and reveling in her newly found freedom. She's friendly and caring, yet an individual, Daring yet a master of her own emotions. A tear or two still lurk behind her gleaming eyes Which add to her mystery and keep her alive. -Vinita Surana 'Kiran'        

आँसू

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आँसू नहीं ये खारा जल है .......अगर मन नहीं निर्मल है   अतिरेक में ये बहते अगर ......तो पवित्र गंगा जल है     कोई कहें मोती अनमोल.......तो कभी ये अनकहे बोल   बहते है जब भी आँसू..... हृदय में होती हलचल है -विनिता सुराना    

मेरा भारत महान ! {वीर (आल्हा) छंद }

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अमन चैन की चाहत हमको, सब धर्मों का हो सम्मान मानवता हो हर इक दिल में, सम हो गीता और कुरान प्रेम-पुष्प से चमन सजाए, काँटों का कर दे अवसान   शत्रु पग नहीं रखने पाए, सीमा पर मुस्तैद जवान तोड़ो नफरत की दीवारें, बनी रहे भारत की आन जग को दो पैगाम अमन का, हो ऊँची झंडे की शान अन्याय नहीं होने पाए, हो दुष्टों का काम तमाम लुटे नहीं फिर अबला कोई, नारी का हो उच्च मुकाम खेतों में फसलें लहरायें, भरे रहे हर दम खलिहान हो अंत अभाव औ भूख का, मिले भ्रष्टों को मृत्यु दान नमन शहीदों को शत-शत है, हुए देश पर जो बलिदान सो न पाये शत्रु सुकून से, मिले शहादत को सम्मान रहा कभी सोने की चिड़िया, फिर से लौटे वो सम्मान हर दिल से हुंकार उठे ये, मेरा भारत देश महान ! -विनिता सुराना