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Showing posts from February, 2020

गुमनाम मोहब्बत

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कहा था न मैंने जो मुझे जानना चाहो तो ये रस्मो रिवाज़ और बंदिशों को परे रखकर कोशिश करना ... कफ़स में हुई तो क्या मन तो पंछी है खुले आसमान का, उसे क़ैद नहीं कर सकता कोई और न रोक सकता है अपने साथी से मिलने से .. हाँ तकलीफ तो होती है देखकर कि मेरे मन पर दस्तक तो दी तुम्हारे मन ने पर ये दिमाग़ तो मन का बैरी है, ये समझने में नाकाम रहे .. अब वक़्त-ए-रुख़सत में न मेरे पास कहने को कुछ रहा और न तुम ही कुछ कह पाए .. तुम दूर खड़े मुझे जाते देख रहे थे और बस में गाना बज रहा था "तो क्या हुआ जुदा हुए मगर है खुशी मिले तो थे तो क्या हुआ मुड़े रास्ते में कुछ दूर संग चले तो थे दोबारा मिलेंगे किसी मोड़ पे जो बाकी है वो बात होगी कभी चलो आज चलते हैं हम फिर मुलाकात होगी कभी फिर मुलाकात होगी कभी जुदा हो रहे हैं कदम फिर मुलाकात होगी कभी" गिला एक ही रहा, काश कि एक बार गले लग कर रो लिए होते तो बह जाते वो आंसू जो ज़ह्र बनकर उतर गए भीतर और मौत का सबब बन गए हमारी पाक मोहब्बत के ! #सुन_रहे_हो_न_तुम

एक याद और

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तन्हा होना अच्छा है, भरा सा लगता है मन .. रीतने लगे थे आहिस्ता-आहिस्ता, किसी का साथ या खुद का खो जाना ? अच्छी है ये तन्हाई .. यादों से अटे पड़े हैं मन के दूरदराज़ कौने तक "चलो अब और यादें नहीं जोड़ेंगे " यही कहा करते हैं खुद से हर बार ! और धकियाते एक और याद जगह बना लिया करती है .. अच्छा है मेरे शहर से तुम्हारा गाँव तुम्हें मुस्कराने की वजह देता है ... तुम्हारा घर छोटा है  मेरा पिंजरा बहुत बड़ा  #सुन_रहे_हो_न_तुम

अलविदा कहना था मगर ...

 30 जून की वो रात, हर ओर घनघोर अंधेरा, भीतर भी बाहर भी और क़लम लगातार चहलक़दमी कर रही थी, सामने कोरे पन्ने थे पर लफ़्ज़ नदारद । फिर अचानक एक धुंधला सा चेहरा उभरता गया, महीन सी रूपरेखा और दो चमकती आंखें ... यकायक एक आवाज़ गूंजी मेरे सूने से कमरे में, जैसे आहिस्ता से दस्तक दी हो किसी बंद खिड़की पर ..       सलीके से एक उदास सी रागिनी मेरे खाली मन में उतर कर पसरना चाहती थी और मैं चाह कर भी उसे रोक नहीं पायी। दशकों से बंद खिड़की को आहिस्ता से धकिया कर जो दाख़िल हुई उदासी तो मन को जाने कैसी प्यास से भरती चली गयी। उस आवाज़ में अद्भुत कशिश थी, शायद उसमें बहती उदासी और गहरे तक घुली इश्क़ की चाहत पर आश्चर्यजनक बात ये भी थी कि उसे भी मेरी आवाज़ में वही कशिश महसूस हुई । ये इश्क़ की चाहत कहीं न कहीं एक टूटे रिश्ते को ढोया करती है, तभी तो कुछ रेशे बेचैनी के जोंक से लिपट जाया करते हैं और आगे बढ़ना ज्यादा मुश्किल लगता है पर पीछे लौटना उतना ही आसान !        ये उस लंबी रात का सुरूर था जो जाने कितने ही दिन, महीने डूब गए और हम भूल गये कि सुबह की पहली रोशनी में इस रात का मायाजाल खो देगा अपना तिलिस्म और हमें लौटना होगा

पहला स्पर्श

गाड़ी में साथ बैठे जब उसने हौले से हाथों में एक हाथ थामा तो यूँ लगा जैसे ये सबसे पहला स्पर्श है ... पहला यानि पहला ही इससे पहले स्पर्श किया ही नहीं किसी ने .. अबोले से उन पलों में कितना कुछ कहा गया, कितना कुछ सुना गया । लबों से अल्फ़ाज़ का मेल तो हुआ पर मन जाने कहाँ - कहाँ विचरता रहा । इधर-उधर की बातों में समय उड़ता रहा और बिछड़ने की बेचैनी थी कि बढ़ती ही जा रही थी ।       कुछ अहसास बयां होते ही कहाँ हैं ... उसने हथेली को लबों से छुआ और जैसे अंकित हो गया एक नाम टैटू की तरह , अमिट और गहरा ... मन तो था कि गले लग कर कहे, "क्या ये वक़्त यहीं रुक नहीं सकता? क्यों बिछड़ना होगा ये जानते हुए भी कि शायद ये आखिरी मुलाकात है?" पर एक दोस्ताना आलिंगन के साथ "बाय" ही कह पायी वो और बिना पीछे मुड़े नम आंखों और लरजते होठों के साथ तेज़ी से आगे बढ़ गयी। सुनो मेरी क़लम नहीं कह पाएगी कुछ पर तुम समझ लेना सब, अनकहा भी अनसुना भी ... #सुन_रहे_हो_न_तुम