Posts

Showing posts from June, 2017

अधूरी सी प्यास

तुम पास नहीं, साथ भी नहीं फिर भी जाने क्यों लगता है तुम हो यहीं कहीं ... जैसे हाथ बढाऊँ और छू लूँ तुम्हें! जाने ये कैसा आभास है, कैसा एहसास है, तुम, तुम्हारा होना कुछ नया भी नहीं बस है, जैसे हमेशा से था और हमेशा रहेगा... सुनो, तुम शब्दों से परे हो, हमारे बीच खामोशियाँ बोझिल नहीं, संगीत सी लगती हैं, मैं अक्सर तुम्हें गुनगुनाते हुए सुनती हूँ जब सूखे पत्ते मेरे साथ अठखेलियाँ करते हैं अलसुबह की मदमस्त सी सबा में.. नरम गीली घास में मेरे कदमों से कदमताल मिलाते, तुम्हारी हथेली की वो हल्की सी छुअन मुझे सिहरन दे जाती है ... वो बड़े से पेड़ की डालियाँ जब झुक कर हौले से सहला जाती हैं तो चौंक जाती हूँ वो कुंवारा सा स्पर्श, वो मीठी सी गुदगुदी, वो धड़कनों का यकायक तेज हो जाना, साँसों का बोझिल हो जाना, सब कुछ वैसा ही है कभी नहीं बदला ... जितना जानती जाती हूँ तुम्हें थोड़ा और जानने की प्यास रह जाती है, जाने क्यूँ मुझे तुम्हारी आदत नहीं हुई अब तक, अगर हो जाती तो ये जादुई छुअन बरकरार कैसे रहती ? सुनो, तुम हमेशा ऐसे नए-नए, अधूरी प्यास जैसे रहना, ऐसे ही अच्छे लगते हो तुम !

कैसे भुलाओगी ?

मैं निरंतर चलती रही, सोचा जब बहुत दूर निकल जाऊँगी तब थक जाएंगी एक दिन तुम्हारी यादें भी मेरे पीछे आते-आते और तुम, तुम ठहर जाओगे, थोड़ा सुकून पाओगे, और शायद मुझे भी थोड़ा सुकून मिल जाए । तुमसे सब साझा किया बस अपनी बेचैनी अपने तक सीमित कर लेनी चाही मगर तुम भी कम ज़िद्दी नहीं मेरे दूर जाते हर कदम के साथ तुम धीरे-धीरे मुझमें सिमटते गए खुद को थोड़ा-थोड़ा मुझमें घोलते गए सच ही कहा था तुमने .. "मैं साया हूँ तुम्हारा, यूँ हाथ न छुड़ा पाओगी। मैं तो हर शै में मुस्कुराऊंगा फिर कैसे भुलाओगी ?" #किरण

Manali Diaries # 11

मिली है गोद कुदरत की, पले दुश्वारियों में हम। सफ़र आसाँ नहीं तो क्या, रहें हम मौज में हरदम। ऊँचे-ऊँचे दुर्गम पहाड़ों पर बने छोटे-छोटे कच्चे छप्पर वाले घर, जहाँ तक आने-जाने का मार्ग ही हम जैसे शहरी और आरामपसंद लोगों की सांस फुला दे, जब उन्हीं रास्तों पर छोटे-छोटे बच्चों को मीलों का सफ़र हर दिन तय करके स्कूल आते-जाते देखा तो एकबारगी लगा कितना मुश्क़िल है जीवन इन पहाड़ों में बसे लोगों का ! हम जिसे ट्रेकिंग कहकर एडवेंचर ट्रिप के लिए जाते और बहुत खुश होते अपनी उपलब्धि पर, वही उनके लिए रोज की वाकिंग है 😊😊        Naggar के समीप बसे गाँव में घूमते और स्थानीय निवासियों की दिनचर्या देखते समझ आया, "जितनी कम ख़्वाहिशें, उतनी ही अधिक खुशियाँ" । भौतिक सुविधाओं से दूर, प्रकृति के करीब, हर पहाड़ी के चेहरे पर सदाबहार मुस्कुराहट, मिलने-बोलने में सहज भोलापन और मदद करने को सदा तत्पर... अपने ही खेत और आँगन में उगे धान, फल-सब्जियों और गाय के शुद्ध दूध-घी ने जहाँ आत्म-निर्भरता दी है, वहीं सुकून और संतुष्टि भी । घाटियों में बने स्कूल, कॉलेज देख बेहद खुशी हुई कि शिक्षा के प्रति भी जागरूक हैं और साथ ही

Manali Diaries # 10

बचपन में एक खेल खेला करते थे अक्सर, नाम था treasure hunt यानी खजाने की खोज ... कुछ ऐसा ही महसूस हुआ जब हम मनाली के पहाड़ों में छुपे कुदरत के अकूत खजाने को खोजते हुए आगे बढ़ रहे थे चाहे वो हरियाली चट्टानों के पीछे छुपे झरने हों या ऊँचे वृक्षों से लदे घने जंगल के बीच से कहीं कलकल बहती जलधारा हो। ऊँची-ऊँची पहाड़ी की चोटियों पर या छुपी हुई कंदराओं में यूँ ही ऋषि-मुनियों ने अपने ठिकाने नहीं बनाए होंगे, स्वयं से जुड़ने के लिए प्रकृति से जुड़ना और प्रकृति से जुड़ने के लिए गहराई और ऊंचाई तक जाना, शायद यहीं वो रास्ता है, जो उस स्थिति तक पहुंचा सकता है, जहाँ हम 'स्वयं' से जुड़ाव महसूस करते हैं ।      आम पर्यटकों की भीड़-भाड़ से दूर कुछ ऐसे ही ट्रेक्स पर जाना अविस्मरणीय अनुभव रहा, जहाँ स्वयं अपनी आवाज़ भी शोर सी प्रतीत हुई।प्रकृति से वो गुपचुप सी गुफ़्तगू समस्त इंद्रियों से होती हुई सीधे मन पर प्रभाव छोड़ रही थी। शब्दों से परे है वो अनुभव, जब झरने से गिरती जलराशि बारीक सी बूंदों से छेड़ रही थी और वो सौंधी सी ख़ुशबू जो किसी भी इत्र को कभी भी मात दे सकती है। बीच घने जंगल के कच्चे रास्ते से गुजरते हुए, ध

Manali Diaries # 9

कभी-कभी मंज़िल से कहीं अधिक ख़ूबसूरत रास्ता होता है, कुछ ऐसा ही है Banjar की खूबसूरत हरी-भरी वादियों में बसे छोटे से गांव Jibhi तक पहुँचने का रास्ता ! चंडीगढ़-मनाली हाईवे पर एक लंबी सुरंग पार करते ही Aut, एक छोटा सा शहर और वहाँ से लगभग 35 km का ख़ूबसूरत सफर है Jibhi का। चीड़ के पेड़ों के अलावा सेब, अनार, अखरोट, लाल बेर से लदे पेड़ सड़क के किनारे से लगभग पूरे रास्ते आँखों को ठंडक देने के साथ ललचाते भी है (मगर अफसोस हम फल पकने से कुछ पहले पहुँच गए )। चिलचिलाती धूप होने के बावजूद पूरे सफर में एक पल को भी नज़र नहीं हटी कुदरत के खूबसूरत नज़ारों से । शृंगा ऋषि के मंदिर पहुँच कर लगा, छोटा सा मंदिर ही तो है, परन्तु जब एक सीढ़ी चढ़कर ऊपर पहुँचे तो शीतल बयार ने एक बारगी पूरे रास्ते की तपन भुला दी। पहाड़ी झरने का कुदरती बर्फीला पानी, जो टीटू ने रास्ते से भरा था, पीकर जो तृप्ति मिली, वह स्वाद और ठंडक किसी 20 ₹ वाली मिनरल वॉटर की बोतल में कहाँ ! अरे हाँ ये तो बताना ही भूल गयी इस सफर में टीटू (कॉटेज का केयरटेकर) हमारा गाइड था, क्योंकि ये उसका पैतृक गाँव है और वह Jalori pass (जो हमारा अगला पड़ाव था) के आसपास के

Love 'You' more ...

I kept on walking away From these disturbing emotions To let this unnerving feeling of 'being in love' rest in peace Assuming you would tire of me someday N i too shall live in peace with my love My untiring love This undying passion for you Will savour it in my dreams, my thoughts n words.. Yet you were so right when you said "i may not be with you yet i'm in you.. inexhaustible and indispensable" Yes, i can never get enough of 'you' yet i never desire any more Just love 'you' more and more ... ©Vinita Surana Kiran

Manali Diaries # 8

पानी पानी रे पानी पानी इन पहाड़ों की ढलानों से उतर जाना धुआं धुआं कुछ वादियाँ भी आएँगी गुज़र जाना इक गाँव आएगा मेरा घर आएगा जा मेरे घर जा नींदें खाली कर जा.. पानी की तासीर ही कुछ ऐसी है कि मन भिगो देता है, चाहे आसमाँ से बरसे, चाहे समुद्र में उठती लहरों के संग आये, चाहे पहाड़ों से पिघलती बर्फ झरनों के रूप में आये या फिर कलकल बहती नदिया ! साँझ ढल रही थी, जाने कितने ही रंग गलबहियां कर रहे थे आकाश में जैसे विदा ले रहे हो निशा के काजल में घुल जाने से पहले .... ' पाराशर लेक ' से लौट आये थे मगर अब भी मन वहीं कहीं भटक रहा था बावरा सा ... लौटते हुए गाँव के छोटे से बाज़ार में काका की दुकान से मिठाई ली (दो दिन से कुछ मीठा खाने की हुडक उठ रही थी 😜), सादी सी दिखने वाली मिठाई में गजब का स्वाद था, बाद में अफसोस हुआ कि थोड़ी ज्यादा क्यों नहीं ली। रिमझिम फिर शुरू हो चुकी थी तो इस बीच काका और बाकी लोगों से बतियाने का मौका मिल गया और एक बच्चे को टायर लुढ़काते देख अपने बचपन वाले घर की गलियां याद आ गयीं। हाय ! वो बचपन के खेल , वो दिन

Manali Diaries # 7

कुछ दृश्य और मन पर उनका प्रभाव केवल और केवल महसूस किया जा सकता है, न केवल शब्दों की पहुँच से परे होता है बल्कि अच्छे से अच्छा कैमरा भी उसे समाहित नहीं कर पाता ... कुछ ऐसा ही अनुभव था 'पाराशर' का ! अब भी वो चल दृश्य मन पर अंकित है ... भुंतर से 50 km का सफर तय करके मनाली के विपरीत दिशा में सबसे ऊंची चोटियों में से एक पर खड़े हम, दूर सामने पसरे मनाली के हरे-भरे पहाड़ और उनके पीछे से झांकती बर्फीली चोटियाँ, और बीच में गहरी घाटियाँ हरे-भरे चीड़ के वृक्षों से लदी और चमकीली हरी घास का फर्श सा बिछा हुआ... पाराशर में कदम रखते ही बादलों ने स्वागत किया अपनी गर्जना से मानो कह रहे हों "स्वागतम सुस्वागतम" साथ ही ऊपर आकाशीय कैमरा बार-बार फ्लैश चमका रहा था जैसे वो भी कैद कर लेना चाहता हो वो लम्हा जब हम एकाकार हो रहे थे कुदरत से ! तपती हुई धूप में आरंभ हुआ सफर यूँ मुक़म्मल होगा, सोच से भी परे था।       50 km पहाड़ी सड़क पर सफर , ऊंचाई की ओर, अद्भुत था वो अनुभव जब कभी-कभी नीचे की गहराई की ओर देखना भी अजीब सी सिहरन दे रहा था पर मन रोमांचित भी था । जहाँ टैक्सी रुकी वहाँ का दृश्य यक़ीनन मनमोहक

Manali Diaries # 6

कभी गौर किया है आपने, अक्सर मौसम बदले तो मन का मौसम भी बदल जाता है । तेज धूप में पानी का बहता दरिया भी उतना सुकून नहीं देता जितनी सुहाने मौसम में बरसी कुछ बूंदे ! मणिकरण के गुरुद्वारा साहिब से बाहर आते ही काली बदरिया ने स्वागत किया और गड़गड़ाहट भी मधुर संगीत सी लगी, फिर शुरू हुई रिमझिम ने तो मानो अमृत बरसा दिया । ठंडी हवा और ख़ुशनुमा मौसम ने मजबूर कर दिया कदमों को पुल पार मंदिर के आंगन में कुछ क्षण रुककर एक आख़िरी बार गुरुद्वारा साहिब और सहचरी पार्वती नदी को नज़र भर देखने के लिए। यादगार के रूप में सेल्फी तो बनती ही थी ! 😊😊        इतने सुहाने मौसम में कुदरत का साथ पर्याप्त लगा इसीलिए कसोल के बाज़ार में रुकने के बजाय वापसी में टैक्सी आगे बढ़ती रही। "मैडम जी अगर थोड़ा सा पैदल चलें तो नदी के उस पार छोटा सा गाँव है और वहीं नीचे नदी के पास भी जा पाएंगे। वो संकरा लकड़ी का पुल देख रहे हैं, उसी से जाना होगा उस पार", टैक्सी ड्राइवर विकास ने कहा तो हम तुरंत तैयार हो गए। सड़क से नीचे उतरते एक संकरे से कच्चे रास्ते पर चलते-चलते लकड़ी के पुल पर कदम रखा तो अपने आसपास बिखरी कुदरत की ख़ूबसूरती में ज

Manali Diaries #5

मणिकरण यूँ तो गुरुद्वारा, प्राचीन श्रीराम मंदिर , कृष्ण मंदिर , शिव मंदिर और ताते ( गर्म ) झरने के लिए प्रसिद्ध है... मगर यह ट्रेकिंग पसंद करने वालों के लिए भी प्रमुख आकर्षण है... मलाना, बरसैनी, खीरगंगा और बहुत से ट्रैकिंग पॉइंट यहीं से आरंभ होते हैं ।          हमारे टैक्सी ड्राइवर ने हमें गुरुद्वारा से थोड़ा आगे एक पुल के पास उतारा जो पार्वती नदी के उस पार जाता है, जहाँ से हमने श्रीराम मंदिर , शिव मंदिर , कृष्ण मंदिर और एक दो और भी छोटे मंदिर देखे। श्रद्धालुओं की भीड़ यहाँ भी उसी तरह मिली जैसे भारत के लगभग सभी मंदिरों में और जब बाज़ार की रंगबिरंगी दुकानों से होते हुए गुरुद्वारा साहिब पहुँचे तो वहाँ भी पाँव रखने की जगह नहीं , इसके बावजूद व्यवस्था बहुत ही सुनियोजित और सुव्यवस्थित ।       सड़क के इस पार से गुरुद्वारे को भी जोड़ता एक और पुल है, पुल के नीचे वेग से बहती पार्वती नदी, जिसके एक तरफ फूटता गर्म पानी का स्रोत और दूसरी तरफ बहकर जाता वही पानी बर्फ सा शीतल हो जाना, इसे कुदरत का करिश्मा मान , यह स्थान बहुत से लोगों