याद है न !
महज़ तीन साल की उम्र या शायद अढ़ाई ही, एक मासूम कृति (किसी की तो होगी) तेज़ बुखार से कांपती हुई स्टेज पर आकर अपना परिचय देती है और फिर बहने लगती है स्वर सरिता .. इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमज़ोर हो ना हम चलें नेक रस्ते पे हमसे भूल कर भी कोई भूल हो ना कभी बहुत सुनी थी ये प्रार्थना और गुनगुनायी भी, शब्दों में सम्मोहन है और ओज से भर देने का सामर्थ्य भी पर कल शाम जाने क्यों आंखें नम होती चली गयीं ... अवचेतन में गहरे तक समाधिस्थ कोई स्मृति मन के द्वार पर दस्तक दे रही थी पर हौसला न कर पाई वो स्वेच्छा से मजबूत कीलों से बंद द्वार को खोलने का .. कुछ लम्हें जीये नहीं पीये जाते हैं ! 💕 #डायरी_के_ज़र्द_पन्ने