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Showing posts from November, 2018

याद है न !

महज़ तीन साल की उम्र या शायद अढ़ाई ही, एक मासूम कृति (किसी की तो होगी) तेज़ बुखार से कांपती हुई स्टेज पर आकर अपना परिचय देती है और फिर बहने लगती है स्वर सरिता .. इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमज़ोर हो ना हम चलें नेक रस्ते पे हमसे भूल कर भी कोई भूल हो ना      कभी बहुत सुनी थी ये प्रार्थना और गुनगुनायी भी, शब्दों में सम्मोहन है और ओज से भर देने का सामर्थ्य भी पर कल शाम जाने क्यों आंखें नम होती चली गयीं ... अवचेतन में गहरे तक समाधिस्थ कोई स्मृति मन के द्वार पर दस्तक दे रही थी पर हौसला न कर पाई वो स्वेच्छा से मजबूत कीलों से बंद द्वार को खोलने का .. कुछ लम्हें जीये नहीं पीये जाते हैं ! 💕 #डायरी_के_ज़र्द_पन्ने

तुम्हारा इंतज़ार है .. तुम पुकार लो

ये सफ़र इतना लम्बा क्यों है? अक्सर इस सवाल में उलझ जाता है मन.. कदम दर कदम जाने कितने एहसासों से रूबरू होता, कुछ अनकही बातें, कुछ आवारा सी ख़्वाहिशें, अक्सर, अनजाने ही जोड़ता, हर अनदेखी, अनपरखी ठोकर पर गिरता-संभलता, जाने कितने सौपान छू आता, सहर से सांझ तक, धूप से छांव तक, कितने रंग बदलती फ़ज़ा और हर रंग में ख़ुद को ढालता, आधी-अधूरी नींद के मध्यांतर में अक्सर, ग़ैर मगर फिर भी अपनों से लगते सायों से घिरा रहता है मन ... न वक़्त रुका, न उम्र ठहरी पर मन जाने क्यूँ यायावर सा भटकता हुआ भी बार-बार लौटता रहा उस सहरा में जहाँ कुछ गहरे निशान अब भी दबे हैं वक़्त की धूल से ढके हुए, अवशेष ही सही पर कहीं कुछ जड़ें अब भी दबी हैं, जो बरसों नमी से दूर होकर भी जाने कैसे ख़ुद को ज़मीं से अलग न कर पायीं .... अक्सर ठिठक कर थम सा जाता है मन जब रेडियो पर हेमंत दा जाने कितनों के मन की टीस को स्वर देते हैं ... ख़्वाब चुन रही है रात, बेक़रार है तुम्हारा इन्तज़ार है, तुम पुकार लो 💕 किरण #सुन_रहे_हो_न_तुम

अंजुरी

कोशिश तो बहुत की, थामे रहूँ मगर कुछ लम्हे छिटक जाना तो लाज़मी था आख़िर अपनी दो हथेलियों में कैसे संभाल पाती वे सागर भर अहसास और उनमें भीगे वे अनमोल लम्हे .… याद है बारिश की बूंदों को मेरी हथेली से रिसते देख तुमने अपनी अंजुरी मेरी हथेली के नीचे लगा दी थी ... काश यूँ ही हर लम्हा छिटक कर तुम्हारी अंजुरी में महफ़ूज़ हो जाता तो वक़्त की धूप में पिघलने से बच जाते हमारे वे अनमोल लम्हे ... ❤️ किरण

धीमे-धीमे गाऊं मैं ..

अपने ही ख्यालों में डूबी वह जब कभी वो गीत गुनगुनाती तो अक्सर मन वहाँ ले जाता जहाँ कुदरत की गोद में लेटे वह अपने हमसफ़र की आंखों में कितने ही प्रेम पत्र पढ़ लेती और उनके जवाब भी लिख देती अपनी उंगलियों से ... हर स्पर्श एक अलग हर्फ़ उकेरता और वह उतनी ही आसानी से पढ़ भी लेता उसमें छुपे कितने ही एहसास ... आख़िर ये उनकी ही तो गढ़ी हुई भाषा थी, महज़ एक हल्का सा स्पर्श भी इतना कुछ कह जाता जिसकी व्याख्या शायद कोई 200 पृष्ठ की पुस्तक भी न कर सके ।                      आज से पहले कभी कहाँ समझ पायी कि उस गीत के इतने मायने क्यों थे उसके लिए, कि कहीं सबसे भीतर का कोना तक भीग जाता उसकी फुहार में, मौसम कैसा भी हो पर रिमझिम का सा एहसास देर तक, दूर तक भीगो जाता। आकाश की चादर में टंके सारे सितारे उसके साथी बन चुके थे जिनसे घंटो बतियाते कितनी ही रातें सहेजती गयी अपनी डायरी के कोरे कागज़ों में ताकि अगर किसी दिन किसी मोड़ पर अचानक मिल जाए वह हमसफ़र तो तोहफे में दे सके ।      आज अरसे बाद जब उसने अपने पसंदीदा गीत भेजे तो अचानक वही गीत स्मृतियों की कैद से रिहा हो गया, साथ ही रिहा हो गए कुछ रंग, कुछ लकीरें, कुछ हसरतें

तुम हो तो ...

वह पास नहीं मगर आज भी साथ तो होगा तभी तो ये त्यौहार इतने खास हो जाते ... घर में भले न हो पर दिलों में रौनक हो तो हर कौना सजा सँवरा सा लगता। हर साल की तरह रंगोली नहीं सजायी उसने पर जैसे रंगों में लिपटी दमक रही थी ... हाथों में दीयों की थाली लिए गुनगुनाते हुए एक एक दीया लगाते जाने कितनी खुशियाँ बिखेर आयी आँगन में ..      उन दोनों के बीच अनगिनत समानताएं रही होंगी पर असमानताएं भी तो होंगी मगर जब कोई प्यार में हो .. न न उनके जैसे गहरे इश्क़ में हो तो केवल निगाह भर जाती है असमानताओं पर और फिर धकेल दी जाती हैं दिमाग के किसी अंधेरे कोने में ताकि धीरे-धीरे विस्मृत की जा सकें। चेहरे और गले के तिल से लेकर नाक और होंठो का आकार तक मिल जाता, शायद किसी दिन चेहरा भी पूरी तरह मिलने लगे क्योंकि ऐसा सुना है उन्होंने कि जिसे दिल से चाहा हो उसके जैसा हो जाना कोई विस्मय की बात नहीं।         अजब है ये इश्क़ भी ! एक पल में मीलों का सफ़र तय कर लेता है मन, मीलों ही नहीं शायद एक उम्र का भी तभी तो वक़्त छू नहीं पाया उन्हें और चुपचाप गुज़र गया और दूर खड़ा आज भी देख रहा उन्हें एक दूजे में डूबे हुए ... दो दिल मिल रहे है