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Showing posts from December, 2014

सृजन

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सुरमे वाले कटीले नैन, उभरे हुए कपोल, सुतवाँ नाक में झूलती नथ, लजीले लबों पर अधखिली मुस्कान, कांधों पर झूलती बलखाती लटें, साँचे में ढला इकहरा बदन... वो गढ़ रहा था एक मूरत प्यारी सी जो अक्सर दस्तक दिया करती थी उसके ख़्वाबों की चौखट पर , चुपके से चुरा लेती थी नींद और छोड़ जाती थी एक अतृप्त प्यास ! दीवाना सा खोया था अपने मनमोहक सृजन में कि सहसा एक स्पर्श , एक एहसास , और साकार हो उठी उसकी कल्पना , एक लम्हा जो जी उठा था और भर गया उसका अधूरापन ... कल कला के पारखी आयेंगें उन्हें दिखाई देगा उसका हुनर , उसकी कला सराहा जायेगा उसका कौशल , उसका फ़न पर कहाँ देख पायेंगे वो रूमानी पल कहाँ जी पायेंगे वो मासूम एहसास दीवाना मुस्कुराएगा उनकी नासमझी पर क्यूंकि मुकम्मल कहाँ होता है कोई सृजन मुहब्बत के बिना ! © विनिता सुराना किरण

प्रेरणा (कहानी)

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सभागार करतल ध्वनि से गूँज रहा था , नव्या की आँखों में मिश्रित भाव तैर रहे थे ..... हर्ष था क्योंकि उसकी तपस्या सफल हुई थी और कहीं भीतर एक कौने में टीस भी थी उस बीते समय की जो रह-रह कर अब भी उसकी आँखों के समक्ष अपनी पूरी वीभत्सता के साथ चल-चित्र की भांति घूम जाता है | आज उसके जीवन का सबसे बड़ा दिन था , उसे साहित्य व कला के क्षेत्र में उसके योगदान के लिए एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा सम्मानित किया जा रहा था , परन्तु उसकी आँखें उस भीड़ में जिसे तलाश रही थी वो कहीं नज़र नहीं आ रहा था , उसकी यहाँ तक की यात्रा का प्रेरणा स्रोत ....... प्रभात, जो शायद स्वयं भी इस तथ्य से अनभिज्ञ था |              घर तक का रास्ता आज बहुत लम्बा प्रतीत हो रहा था , जाने कब पुरानी यादें एक-एक कर उसके सामने आने लगीं | मध्यमवर्गीय परिवार की लाड़ली बेटी और दो भाइयों की इकलौती बहन नव्या खूबसूरत और प्रतिभाशाली तो थी ही , उसकी सादगी और व्यवहार कुशलता ने शीघ्र ही उसे कॉलेज में लोकप्रिय बना दिया | एक दिन बस स्टॉप से घर के रास्ते में उसका सामना अनूप से हुआ , अचानक यूँ किसी को अपना रास्ता रोके देख नव्या थोडा घबरा गयी ,