Posts

Showing posts from January, 2014

रवायत (मुक्तक)

Image
तपिश में फेर ली उसने निगाहें जब करें फिर आरजू क्या छाँव की भी तब ज़माने की ‘किरण’ देखी रवायत ये रुलाया है उसी को जो दुःखी है अब ©विनिता सुराना 'किरण'

दृश्य

Image
ये बस्ती है पाषाणों की, ह्रदय हुए बंजर ! मरनासन्न संवेदनाएं, कंटकों के मंजर ! विलुप्त हो रहे क्यूँ निर्मल झरने सद्भाव के, आहत हो प्रलाप करते सब रंग समभाव के । दोष किसका जो उजड़ा ये उपवन हरा-भरा? ठूंठ हुए वृक्ष, क्यूँ ये पतझड़ असमय झरा? संबंधों में दिखती दरारें, प्रेम के सोते सूखे, दरकती दीवारें, ढह न जाए निर्माण जीवन के। आओ रोपे कुछ बीज नए और सींचें नेह से, सुवासित हो पुनः उपवन नव कोपलों से। अद्भुत होगा दृश्य वो , मनोहारी और नयनाभिराम, खिल उठेगा पुष्प सद्भाव का और पिघलेंगे पाषाण । -विनिता सुराना 'किरण'

ग़ज़ल

Image
समझे थे राजदां वो हमारा रकीब था छलता रहा सदा ही लगा जो करीब था नादाँ थे मांगी उनसे ख़ुशी की जो दो घडी समझा जिसे इलाही वो दिल का गरीब था माना जिसे अजीज़ वफ़ा ही सदा किये वो राह में ही छोड़ गया जो हबीब था सोचा नहीं था ख्वाब बिखर जायेंगे सभी दामन जला गया वो कहर भी अजीब था कामिल न हो सकी है कभी ख्वाहिशें मेरी, पाया ‘किरण’ वही है, जो अपना नसीब था -विनिता सुराना 'किरण'

ग़ज़ल

Image
तक़दीर में लिखी न मुहब्बत की आयतें मिलती नहीं यहाँ पे सभी को है चाहतें हम पर नज़र तुम्हारी इनायत जो हो गई मिल जाएगी हमें तो तपिश में भी राहतें हो मुफलिसी का दौर न पकवान हो कभी दो कौर भी मिले तो लगे जैसे दावतें जब सामने थी जीस्त कहाँ जान वो सके पहचान तब हुई न मिली जब थी मुहलते हैराँ है लफ्ज़ साथ न दे पाएंगे ‘किरण’ आँखें बयाँ करेंगी लबों की शिकायतें -विनिता सुराना 'किरण'

क्षणिकाएं

Image
जीवन   न अपना कभी आज या कल सिमट जाएगा एक दिन आगोश में समय के बनकर मीठा छल ! वो हसीं ख्वाब सा पलकों में पला चाँदनी में खिला ओस की मानिंद सौगात भोर की या धोखा नज़र का ! ©विनिता सुराना 'किरण'

गाँव (दोहे)

Image
पर्वत के तलहट बसा, मेरा प्यारा गाँव | हरियाली है चहुँ तरफ, और घनेरी छाँव || कल-कल बहती है नदी, प्रचुर बहे है नीर | धूल प्रदूषण है नहीं, दूर रहे सब पीर || बचपन खेले अंगना, माँएँ गाती गीत | हिल मिल रहते है सभी, मन में गहरी प्रीत || पशु-पक्षी निर्भय रहें, सुन्दर सा संसार | आओ देखो तुम सभी, मेरा ये परिवार || -विनिता सुराना ‘किरण’

मन

Image
एक सुबह ठिठुरती सकुचाई सी कोहरे की श्वेत चादर में लिपटी गुनगुनी धूप को तरसी, संग एक प्याली अदरक वाली चाय और कल की बासी ख़बरें अखबार में सिमटी अलसाया सा मन कहने लगा मुझसे "आज कुछ नहीं ... न शब्द , न भाव , न कविता , न ग़ज़ल बस तुम और मैं!" सुन कलम मुस्करायी लेती एक ठंडी साँस ओढ़ डायरी के स्वच्छ पन्ने सो गयी. पर ये क्या ? फिर दगा दे गया मन जा पहुँचा उड़ कर पास तुम्हारे अब कहाँ रही तन्हाई ? वाचाल सी कुछ यादें करने लगी शोर तुम्हारी प्रीत की ओस में भीगे पंख हो चले भारी अलसाया मन भूल गया वापसी की उड़ान और सिमट गया आगोश में तुम्हारे... कोई शिकायत नहीं मुझे बस डरती हूँ जब मेरे चेहरे की मुस्कान खोल देती है राज सारे मेरे मन के...... - विनिता सुराना ' किरण '

चौपई छंद

Image
मीठे वचनों की बौछार | कड़वाहट का काटे वार || दूरी मिटती बढ़ता प्यार | जीवन बन जाए त्यौहार || ********************** धीरज से सधते सब काज | हडबड से गिर जाये गाज || हौले से सुर साधो आज | सध जायेंगे सारे साज || ******************** शब्दों में तू संयम पाल | सरगम क्या जब टूटे ताल || मन निर्मल तो चमके भाल | सत्कर्मों में जीवन ढाल || ********************* रख अपने चित्त स्वाभिमान | औरों को भी दे सम्मान || पीर परायी अपनी जान | मानुष की है ये पहचान || ************************** मन को जीते मिलती जीत | जग झूठा है झूठी प्रीत || माया को जो समझे मीत | कैसे समझे जग की रीत || ************************** मुरली मीठी छेड़े तान | अधरों पर खेले मुस्कान || गोपी गैया भूले भान | राधा रानी की वो जान || -विनिता सुराना 'किरण'