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Showing posts from November, 2016

हिस्सा

ये तेरी चाल थी ज़िन्दगी हर वरक़ पर नया किस्सा लिखती रही! पर ज़िद थी ये मेरी भी चुपके से हर किस्से में उसका हिस्सा लिखती रही ! ©विनीता सुराणा किरण

नज़्म

आज फिर लिखा है न एक ख़त तुमने इन बूँदों पर मेरे नाम, तभी तो थिरक रही हैं ये बूँदें फिर दे रही हैं पैग़ाम तुम्हारे आने का ! ©विनीता सुराणा 'किरण'

क़ता

नम मिट्टी लेकर ख़्वाबों की, आओ कुछ लम्हात बुनें। महक उठे मन दोनों का ही, ऐसे कुछ जज़्बात बुनें। एक सुराही गढ़ कर उसमें, भर ले प्रीत लबालब हम , छलक - छलक जो हमें भिगोये, ऐसे प्रेम - प्रपात बुनें। ©विनीता सुराना 'किरण'

क्षणिकाएं

अब क्या शिक़वा, कैसी शिक़ायत ! जितना क़र्ज़ था मेरी उम्मीदों का, बस एक मुस्कुराहट से उतर गया.... *** हासिल होता है सुकूँ कभी ख़ुद को खोकर भी ! *** सुरूर बेहिसाब रहा जाम-ए-इश्क़ का, फिर भी जाने क्यूँ... इक आख़िरी घूँट की प्यास बाकी ही रही ! *** ©विनीता सुराणा किरण

क़ता

तिमिर हर ओर जब दीपों से हारे। वो घर सूना मगर किसको पुकारे। जलाओ इक दिया उनके लिए भी, निगहबां है जो सरहद के हमारे । ©विनीता सुराणा किरण