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Showing posts from January, 2017

ये उम्र गुज़र गयी !

तुम समझे नहीं खामोशियों की ज़ुबाँ और लफ्ज़ ढूंढते उम्र गुज़र गयी । आधी सदी की मुहब्बत या आधी सदी की तलाश तुम मुझमें ही कहीं थे, मैं तुम्हीं में रची-बसी इस बेनाम से मरासिम को आख़िर क्या नाम देते हम? अच्छा ही हुआ न, इसी कश्मकश में ये उम्र गुज़र गयी ... सभी तो कहते हैं रिश्ते निभाये जाते हैं पर मैं बस तुम में, और तुम मुझ में जीते रहे और देखो ये उम्र गुज़र गयी ! ©विनीता सुराणा किरण

तुम्हारे लिए !

हर गुज़रते मोड़ पर इशारा देती रही नियति कुछ समझी और कुछ समझ कर भी नहीं समझी  एक सिरे से जुड़ता गया दूसरा सिरा और जारी रहा मेरा सफ़र हर पन्ने पर थोडा-थोडा छूटती गयी मैं, कभी निखरी और कभी बिखर कर संभलती गयी.. मेरी कहानी से जुड़े हर किरदार ने एक अलग अध्याय लिखा, मगर कुछ किरदार ऐसे भी होते हैं जो उकेरे जाते हैं अमिट स्याही से और कहानी की रूह में समाकर आत्मसात हो जाते हैं .... बस ऐसा ही एक किरदार हो ‘तुम’ ! शायद इसीलिए तुम्हारे कोई तय संवाद नहीं, न तुम्हारा प्रवेश तय है किसी दृश्य में न ही निकास तुम सूत्रधार भी हो और मुख्य पात्र भी तुम्हारे बिना संभव ही नहीं था मेरी कहानी का आरम्भ और इति तो हो ही नहीं सकती क्योंकि मैं रहूँ या न रहूँ मेरी कहानी में तुम हमेशा रहोगे जीवंत और अनंत ! ©विनीता सुराणा किरण

मुझे चुन लिया

जो मैंने कहा नहीं, तुमने वो सुन लिया लफ्ज़ अनकहे, ले ख़्वाब बुन लिया धीरे-धीरे उलझती-सुलझती रही और तुम यूँ ही मुस्कुराते रहे ... सब जानते थे तुम, जानते थे न ? मेरे मन के सुर पहचान जाने कब गीत गुन लिया मैं बस खोयी रही तुम में, और तुमने मुझे चुन लिया। © विनीता सुराणा किरण

उसने कहा ..

उसने कहा... तुम्हें मुक्त किया अपने पाश से जाओ ...जी लो अपनी ज़िन्दगी भर लो कुछ नए रंग, उकेर लो कुछ नयी रेखाएं, सफ़र भी तुम्हारा राह भी तुम ही चुनना, बस मेरा एहसास साथ रखना और रखना खाली वो आख़िरी पन्ना, जिसमें लिख सकें अपना इश्क़ ! ©विनीता सुराणा किरण

लम्हे उधार के

ये वक़्त कुछ लम्हे उधार दे अगर, फिर एक बार महसूस करूँ तुम्हारे लबों का स्पर्श अपने माथे पर, तुम्हारी महक अपनी साँसों में, मेरी बंद पलकों पर वो सारे सपने जो तुम रख दिया करते थे चुपके से, फिर एक बार जी लूँ वो भीगे से जज़्बात जो महक उठते थे पहली बरसात में भीगी मिट्टी के साथ, सुनो न, एक अरसा हुआ तुमसे मिले, दिल की ज़मीं पर अब नहीं होती ओस की नमी, जम गयी है बर्फ़ सी तुम क्या गए, संग तुम्हारे धूप भी चली गयी.. लौट आओ न लेकर फिर वो हमारे साथ के लम्हे फिर पिघल जाएगी बर्फ़ बस ... फकत कुछ अहसास सुलग जाएं ! ©विनीता सुराणा किरण