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Showing posts from June, 2014

प्यास

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कभी-कभी जब अंतस पर बदलियाँ सोच की छाए यादें झीने पंख लगा रिमझिम सौगातें लाए भीगे से मन-आँगन में सौंधी सी खुशबू आए उन वादों की, कसमों की फिर-फिर वो याद दिलाए मदमस्त बहे पुरवाई गीत प्रणय के फिर गाए झूम उठे मन मतवाला तूफां कितने बरपाए सदियों से प्यासी अँखियाँ खुद अपनी प्यास बुझाए कभी-कभी ...... ©विनिता सुराना 'किरण'

पञ्च चामर छंद (चले चलो )

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चले हज़ार आंधियाँ रुको नहीं डिगो नहीं | न छोड़ हौसला कभी कि राह है यहीं कहीं || निशान छोड़ते चलो कि कारवाँ चला चले | न संग हो कभी सभी कि मित्रता फले पले || ©विनिता सुराना 'किरण'

पञ्च चामर छंद (नीर)

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बहा न व्यर्थ में कभी सहेज नीर को ज़रा बुझे न प्यास तो उजाड़ हो हरी-भरी धरा न धार नीर की रहे न सांस एक भी चले रहे न वृक्ष भी कहीं न ज़िन्दगी कहीं पले ©विनिता सुराना 'किरण'

सुनो साथी (गीत)

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सुनो साथी हवा क्या गुनगुनाए फिज़ा भी साथ में जब सुर मिलाए पपीहे ने पुकारा है, कहाँ हो कि सूना हर नज़ारा है, कहाँ हो कटे दिन बेकरारी में सभी अब कि अब तो चाँदनी भी है सताए सुनो साथी ....... नहीं बहले खतों से बावरा मन कि बरखा भी जलाने अब लगी तन उठे है हूक सी दिल में कभी जब विरह के गीत कोयलिया सुनाए. सुनो साथी ..... लगे फीकी रंगोली चौक में क्यूँ नहीं भाते मुझे झूले भला क्यूँ सभी है साथ पर फिर भी न जाने नहीं तुम साथ तो सब है पराए. सुनो साथी ....... ©विनिता सुराना ‘किरण’

कह मुकरिया

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अंक बैठ के मन हर्षाए | दूर गगन को छूना चाहे || खुशियाँ चहके हर गम भूला | क्या सखि साजन ? ना सखि झूला || देख मुझे हर्षित हो जाए | नाम पुकारे मुझे बुलाए || पास रहे वो मन खुश होता | क्या सखि साजन? ना सखि तोता || ©विनिता सुराना 'किरण'