फिर वही ख़्वाब, वही अधूरे जज़्बात

गलियारे के दूसरे छोर पर बरामदे में लगे बड़े से झूले पर बहुत करीब मगर विपरीत दिशा में मुंह किये बैठे थे दोनों, उसका सिर उसके साथी के कंधे पर टिका हुआ और उसके घने बालों की लटें उसके चेहरे पर बिखरी हुई थीं। वो हौले-हौले उसके बालों को सहलाते कुछ कह रहा था कान में, जिसे सुन उसके लबों पर मुस्कान खिल उठी थी। धीरे-धीरे झूले के साथ लहरते वो दोनों एक दूसरे में खोए हुए थे कि तभी किसी ने पुकारा "मीरा..ओ मीरा!" वही जानी पहचानी आवाज़, शायद माँ ने पुकारा था और मीरा झट से उठ कर जाने को हुई थी अंदर, जहाँ से आवाज़ आयी थी, कि साथी ने बाँह थाम कर रोक लिया और उस पल दोनों के चेहरों में बस इंच भर की ही दूरी थी और साँसों की छुअन से धड़कनें बहुत तेज़ हो चुकी थी। एक पल को वक़्त शायद ठहर गया और इससे पहले कि वो पूरी तरह खो जाते उस लम्हे में, एक बार फिर किसी ने पुकारा था उसका नाम ..
"बाबू , जाने दो न ..."
"जल्दी आना.."
"हम्म..." 
वो बेमन से हाथ छुड़ा गलियारे से होते हुए बड़े कमरे की ओर दौड़ पड़ी थी। जानती थी उसके साथी की नजरें पीछा कर रही थीं उसका। उस अधूरे छूटे लम्हे की कसक से लरज रहा था तन और रूह तो जैसे वहीं झूले पर साथी के आगोश में छूट गयी। तभी गीली होती मिट्टी की सौंधी सी ख़ुशबू अचानक उसकी साँसों में उतर आयी और मन तड़प उठा था वापस लौट जाने के लिए अपने साथी के पास, आंखें मूंदे उस ख़ुशबू को भीतर तक उतारने लगी मीरा मगर तभी माँ का स्वर फिर कानों में पड़ा और हड़बड़ाकर आंखें खुल गयीं...
          मगर न हवेली, न गलियारा , न बरामदा, न झूला और उसका साथी ... उफ़्फ़ फिर से वही ख़्वाब, वही अधूरा मिलन, वही बेचैनी, पसीने में नहाई देह और मन ... मन एक बार फिर दो हिस्सों में बंट गया था । ख़्वाब जो हकीकत की तरह अब भी उसके दिमाग़ में छाया हुआ था और दिल फिर तड़प उठा था उस अनजाने साथी से मिलने को, उसे देखने को, उसकी उंगलियों का स्पर्श अपने बालों में, उसकी पकड़ अपनी बाँह पर, उसकी सांसें अपने चेहरे पर महसूस करने को और वो नज़दीकियाँ  .. सब कुछ सच ही था तो फिर ये कहाँ है वो और क्यों ? खिड़की के बाहर झमाझम बरस रही थी बारिश और वही पहचानी सी भीगी मिट्टी की ख़ुशबू उसकी बेचैनी और भी बढ़ा रही थी। ये घर ये कमरा सभी कुछ उसका अपना होते हुए भी क्यों अपना सा नहीं लगता जब भी जागती है इस गाहे बगाहे आने वाले ख़्वाब से ... आधे-अधूरे ख़्वाब से!

#सुन_रहे_हो_न_तुम

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)