अगली मुलाकात

मुझे नहीं आता कविता लिखना
नहीं कहती मैं कोई ग़ज़ल 
न ही कोई नज़्म उकेरती हूँ कागज़ पर 
मैं नहीं ढालती सुरों की बंदिश पर कोई गीत 
ये सब तो बस एक ज़रिया रहे हैं, आज भी हैं और हमेशा रहेंगे,
तुमसे बात करने का,
तुम्हें महसूस करने का,
तुमसे मिलने के बहाने ख़ुद से मिलने का,
तुम्हारे साथ हर वो अहसास जीने का,
जो मेरे मन से तुम्हारे मन को जोड़ते हैं,
जिन्हें नहीं छीन सके कभी ये जिस्मों के फ़ासले ...
अगर तुमसे बात न हो तो ये लफ्ज़ भी 
आंख चुरा कर निकल जाते हैं मेरे करीब से
मैं चाह कर भी नहीं समेट पाती इन्हें अपनी हथेलियों में
बस दूर जाते हुए देखती हूँ चुपके से
और इंतज़ार करती हूं 
तुमसे अगली मुलाकात का !

💖🌹 किरण

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