'तुम' से 'तुम' तक

उलझी हुई कुछ गुत्थियां,
अस्त-व्यस्त से कुछ ख़्वाब,
आहटें कुछ पहचानी, कुछ अजनबी सी, 
शिक़वे, शिकायतें और कुछ उलाहने
कभी नियति से, कभी वक़्त से, कभी ख़ुद से 
सर्द सी शाम और कोहरे का लिबास ओढ़े,
अनजानी सी गलियों से गुज़रती ज़िन्दगी...

कभी सोचा नहीं था
इस धुंध को चीरते,
मेरे ख़्यालों के आसमाँ पर,
कुछ ख़्वाब फिर उड़ान भरेंगे।
तुम सर्च लाइट लिए आओगे 
और अकस्मात खोज लोगे मुझे,
या फिर क़बूल हुई है
शिद्दत से की हुई कोई दुआ !
फिर एक कहानी लिखेगी नियति,
जी उठेंगे कुछ सोए अहसास
सिहरन होगी लफ़्ज़ों में और 
कुछ टूटी कड़ियाँ जुड़ेंगी,
झिलमिलायेंगे कितने ही ख़्वाब नए-पुराने,
और अपनी ही लगाई बंदिशों से अलग 
रस्मो-रिवाज़ों, रिश्तों की भीड़ से दूर 
कहीं बहुत दूर, खोज लेंगे एक ठिकाना
और तिनका-तिनका मोहब्बत से
एक नई-नवेली दुनिया रचेंगे
 'हम-तुम' !

💖किरण

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