मुक़म्मल इश्क़

सुरमे वाले कटीले नैन
उभरे हुए कपोल
सुतवाँ नाक में झूलती नथ
लजीले लबों पर अधखिली मुस्कान 
कांधों पर झूलती बलखाती लटें
साँचे में ढला इकहरा बदन...
वो गढ़ रहा था
एक मूरत प्यारी सी
जो अक्सर दस्तक दिया करती थी 
उसके ख़्वाबों की चौखट पर,
चुपके से चुरा लेती थी नींद 
और छोड़ जाती थी एक अतृप्त प्यास !
दीवाना सा खोया था 
अपने मनमोहक सृजन में 
कि सहसा एक स्पर्श, एक अहसास,
साकार हो गयी थी उसकी कल्पना,
एक लम्हा जो जी उठा था 
और भर गया उसका अधूरापन ...
अगले दिन लोगों को दिखा
उसका हुनर, उसकी कला 
सराहा गया उसका कौशल , उसका फ़न
एक जीवंत कलाकृति को गढ़ने के लिए..
पर दीवाना मुस्कुरा रहा था
उनकी नासमझी पर 
क्यूंकि मुकम्मल कब होता है कोई सृजन
'इश्क़' के बिना !

💖🌹किरण

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