आन्या की डायरी

आन्या उकेर रही थी अपने ख़्याल डायरी में ..

ये किस मोड़ पर मिले हो तुम
जब आदत हो चली थी
तन्हाई की,
ख़ुद से ख़ुद की
रुसवाई की,
चुपके से सरक आती 
खामोशियों की,
बेख़ौफ़ लिपटती 
परछाईयों की....
फिर ये कैसी सरसराहट है
मन के गलियारों में,
जैसे दस्तक दी हो 
फिर एक अहसास ने
चुपके से ...
जी चाहता है
पुकार लूँ तुम्हें
पर क्या तुम सुन पाओगे,
मेरे ख़ामोश लफ़्ज़ ?

अगर हाँ ... तो चले आओ न,
जाने कबसे पुकारती हैं तुम्हें 
मेरी खामोशियाँ,
जाने कबसे इंतज़ार में हैं 
मेरे साथ ये परछाइयाँ भी,
जाने कितने लम्हे राह देखते हैं
जो बिन जीये ही कट गए...

अम्बर ने चुपके से पढ़ लिया और बेख़याली में खोई आन्या के कान में धीरे से फुसफुसाया..
"सुनो,
ये हिसाब किताब फिर कर लेंगे
इसमें उलझ कर मत भूल जाना 
कि आज वादा है मुझसे मिलने का ..
वहाँ जहाँ दूर तक बस ठंडी रेत का समंदर है
तन्हाइयों का संगीत है
चांदनी ने सजाया है हमारा आशियाँ
और बादलों से लुकाछुपी खेलते तारे 
कबसे जाग रहे हैं हमें शुभ रात्रि कहने के लिए !
बोलो आओगी न ?" 💖💖💖😍

#सुन_रहे_हो_न_तुम

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