Manali Diaries # 10

बचपन में एक खेल खेला करते थे अक्सर, नाम था treasure hunt यानी खजाने की खोज ... कुछ ऐसा ही महसूस हुआ जब हम मनाली के पहाड़ों में छुपे कुदरत के अकूत खजाने को खोजते हुए आगे बढ़ रहे थे चाहे वो हरियाली चट्टानों के पीछे छुपे झरने हों या ऊँचे वृक्षों से लदे घने जंगल के बीच से कहीं कलकल बहती जलधारा हो। ऊँची-ऊँची पहाड़ी की चोटियों पर या छुपी हुई कंदराओं में यूँ ही ऋषि-मुनियों ने अपने ठिकाने नहीं बनाए होंगे, स्वयं से जुड़ने के लिए प्रकृति से जुड़ना और प्रकृति से जुड़ने के लिए गहराई और ऊंचाई तक जाना, शायद यहीं वो रास्ता है, जो उस स्थिति तक पहुंचा सकता है, जहाँ हम 'स्वयं' से जुड़ाव महसूस करते हैं ।
     आम पर्यटकों की भीड़-भाड़ से दूर कुछ ऐसे ही ट्रेक्स पर जाना अविस्मरणीय अनुभव रहा, जहाँ स्वयं अपनी आवाज़ भी शोर सी प्रतीत हुई।प्रकृति से वो गुपचुप सी गुफ़्तगू समस्त इंद्रियों से होती हुई सीधे मन पर प्रभाव छोड़ रही थी। शब्दों से परे है वो अनुभव, जब झरने से गिरती जलराशि बारीक सी बूंदों से छेड़ रही थी और वो सौंधी सी ख़ुशबू जो किसी भी इत्र को कभी भी मात दे सकती है। बीच घने जंगल के कच्चे रास्ते से गुजरते हुए, धीमे से फुसफुसाती हवा और दूर कहीं बजता कलकल का मधुर संगीत, खुद-ब-खुद मचल जाते कदम उस ओर बढ़ने के लिए, नदी के करीब आते ही हवा में अचानक ठंडक का बढ़ जाना, यही तो थे वो कुदरती एयर कंडीशनर जो एक अलग सी स्फूर्ति देते हैं तन-मन को ।

#Kiran

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)