Manali Diaries # 8

पानी पानी रे
पानी पानी इन पहाड़ों की ढलानों से उतर जाना
धुआं धुआं कुछ वादियाँ भी आएँगी गुज़र जाना
इक गाँव आएगा मेरा घर आएगा
जा मेरे घर जा
नींदें खाली कर जा..

पानी की तासीर ही कुछ ऐसी है कि मन भिगो देता है, चाहे आसमाँ से बरसे, चाहे समुद्र में उठती लहरों के संग आये, चाहे पहाड़ों से पिघलती बर्फ झरनों के रूप में आये या फिर कलकल बहती नदिया ! साँझ ढल रही थी, जाने कितने ही रंग गलबहियां कर रहे थे आकाश में जैसे विदा ले रहे हो निशा के काजल में घुल जाने से पहले .... 'पाराशर लेक' से लौट आये थे मगर अब भी मन वहीं कहीं भटक रहा था बावरा सा ... लौटते हुए गाँव के छोटे से बाज़ार में काका की दुकान से मिठाई ली (दो दिन से कुछ मीठा खाने की हुडक उठ रही थी 😜), सादी सी दिखने वाली मिठाई में गजब का स्वाद था, बाद में अफसोस हुआ कि थोड़ी ज्यादा क्यों नहीं ली। रिमझिम फिर शुरू हो चुकी थी तो इस बीच काका और बाकी लोगों से बतियाने का मौका मिल गया और एक बच्चे को टायर लुढ़काते देख अपने बचपन वाले घर की गलियां याद आ गयीं। हाय ! वो बचपन के खेल , वो दिन सुहाने 😍
     टैक्सी ड्राइवर ने एक छोटी सी पगडंडी के बारे में बताया लौटते समय जो हमारे कॉटेज से कुछ ही दूरी पर कुछ घरों के बीच से जाती थी सीधे नदी के किनारे । रास्ता कच्चा था और हम बस अंदाज से चल रहे थे तभी कलकल की ध्वनि सुनाई दी और तसल्ली हुई कि हम सही राह पर हैं। बस एक मोड़ और अद्भुत था वो नजारा ... पगडंडी ढलान पर बढ़ रही थी और हम दौड़ते हुए पहुँच गए पानी के पासकोई शोर नहीं बस नीड पर लौटते पंछियों की चहचहाहट, बहते पानी की कलकल और ठंडी हवा की सरसराहट ! देर तक वहाँ बैठे मैं और सखी बतियाते रहे, उस पल ऐसा लग रहा था जैसे पानी भी हमारा हमराज था, हमसे बतिया रहा था । हमारी बातें भी कब रुकी और मन ख़ामोश सा नदिया के संग बहने लगा, कि पता ही नहीं लगा कब शाम ढली और झिंगुरों ने तेजी से गहराती रात के आने की मुनादी कर दी। एक खूबसूरत दिन , कुछ खूबसूरत एहसास, बहुत सी खूबसूरत यादें ... और सुकून भरी नींद एक गिलास गर्म दूध के साथ 😊
अगले दिन फिर से एक नए सफर पर जो निकलना था !

#Kiran

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