Manali Diaries #5

मणिकरण यूँ तो गुरुद्वारा, प्राचीन श्रीराम मंदिर, कृष्ण मंदिर, शिव मंदिर और ताते (गर्म) झरने के लिए प्रसिद्ध है... मगर यह ट्रेकिंग पसंद करने वालों के लिए भी प्रमुख आकर्षण है... मलाना, बरसैनी, खीरगंगा और बहुत से ट्रैकिंग पॉइंट यहीं से आरंभ होते हैं ।
         हमारे टैक्सी ड्राइवर ने हमें गुरुद्वारा से थोड़ा आगे एक पुल के पास उतारा जो पार्वती नदी के उस पार जाता है, जहाँ से हमने श्रीराम मंदिर, शिव मंदिर , कृष्ण मंदिर और एक दो और भी छोटे मंदिर देखे। श्रद्धालुओं की भीड़ यहाँ भी उसी तरह मिली जैसे भारत के लगभग सभी मंदिरों में और जब बाज़ार की रंगबिरंगी दुकानों से होते हुए गुरुद्वारा साहिब पहुँचे तो वहाँ भी पाँव रखने की जगह नहीं , इसके बावजूद व्यवस्था बहुत ही सुनियोजित और सुव्यवस्थित
      सड़क के इस पार से गुरुद्वारे को भी जोड़ता एक और पुल है, पुल के नीचे वेग से बहती पार्वती नदी, जिसके एक तरफ फूटता गर्म पानी का स्रोत और दूसरी तरफ बहकर जाता वही पानी बर्फ सा शीतल हो जाना, इसे कुदरत का करिश्मा मान, यह स्थान बहुत से लोगों की आस्था का केंद्र बन गया। विज्ञान की खोज इसे सल्फर की मौजूदगी का प्रभाव बताती है । इसी ताते पानी के स्रोत से सटकर बल्कि शायद ठीक ऊपर ही बना है पवित्र गुरुद्वारा, जहाँ नीचे तल पर है गर्म पानी का कुंड जिसमें अब भी श्रद्धालु पोटली में चावल बांध कर पकाते हैं। इसी ताते पानी में श्रद्धालु स्नान करते हैं क्योंकि ये मान्यता है कि इस पानी में निरोग करने की शक्ति है।पानी के स्रोत के ऊपर गर्म गुफा और मंदिर, जहाँ चट्टानों से अपने शरीर को तापते श्रद्धालु (शरीर के जिस हिस्से में पीड़ा हो, उसे गर्म चट्टानों से छुआने पर दर्द गायब हो जाता है, ऐसी मान्यता है) । श्रद्धा कम कोतुहलवश हम भी गए गुफा के भीतर, मैं एक मिनट में ही बाहर आ गयी पर मेरी सहयात्री और सखी काफी देर शायद पूरे 5 मिनट तक भीतर रही और पसीना-पसीना होकर लाल मुँह लिए बाहर आई । गुफा के दायी ओर मंदिर, जिसके भीतर जाने की तो सोचना भी मुश्किल था क्योंकि दरवाज़े तक पहुँचने में ही पाँव जलने लगे मानो दहकते अंगारों पर चल रहे हों। मुझे लगता है मुझमें श्रद्धा का अभाव था इसीलिए मुझसे वह ताप सहन नहीं हुआ 😷 खैर आस्था पर कोई सवाल न करते हुए यही कहूँगी कि जब पूरे आत्मबल से कोई अभिलाषा की जाए तो वह अधिकतर सकारात्मक परिणाम देती है, इसी को will power कहा गया है ।
     गुरुद्वारे में मेरा ये पहला प्रवेश था, सो सखी ने कहा दुपट्टा तो है ही नहीं तेरे पास, वहाँ बाहर रखे सफेद रुमाल से सिर ढक लो। अंदर कीर्तन चल रहा था तो मन रम गया, कुछ देर बैठ गए चुपचाप, कमाल की बात ये थी कि जितनी भीड़ बाहर थी उतनी ही शांति और छीड भीतरकुल जमा 20 लोग थे जो वाकई श्रद्धावनत वहाँ बैठे सत्संग में डूबे थे, बाकियों का आना-जाना जारी था।
   इसके बाद बारी थी लंगर की, वो भी पहला ही अनुभव था मेरा ... तो एक सेवादार ने तुरंत टोक दिया सिर पर रुमाल लेने के लिए यहाँ भी ! श्रीराम मंदिर के महंत जी ने भी वहाँ प्रसादी लेने का आग्रह किया था पर हमने गुरुद्वारे का लंगर चुना। छोटे बच्चों से बड़ों तक को सेवा में लगे देख अद्भुत अनुभव हुआ, सुव्यवस्थित और साफ-सफाई से इतने श्रद्धालुओं के भोजन की व्यवस्था आसान तो नहीं होती ।

#Kiran

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