Manali Diaries # 6

कभी गौर किया है आपने, अक्सर मौसम बदले तो मन का मौसम भी बदल जाता है । तेज धूप में पानी का बहता दरिया भी उतना सुकून नहीं देता जितनी सुहाने मौसम में बरसी कुछ बूंदे ! मणिकरण के गुरुद्वारा साहिब से बाहर आते ही काली बदरिया ने स्वागत किया और गड़गड़ाहट भी मधुर संगीत सी लगी, फिर शुरू हुई रिमझिम ने तो मानो अमृत बरसा दिया । ठंडी हवा और ख़ुशनुमा मौसम ने मजबूर कर दिया कदमों को पुल पार मंदिर के आंगन में कुछ क्षण रुककर एक आख़िरी बार गुरुद्वारा साहिब और सहचरी पार्वती नदी को नज़र भर देखने के लिए। यादगार के रूप में सेल्फी तो बनती ही थी ! 😊😊
       इतने सुहाने मौसम में कुदरत का साथ पर्याप्त लगा इसीलिए कसोल के बाज़ार में रुकने के बजाय वापसी में टैक्सी आगे बढ़ती रही।
"मैडम जी अगर थोड़ा सा पैदल चलें तो नदी के उस पार छोटा सा गाँव है और वहीं नीचे नदी के पास भी जा पाएंगे। वो संकरा लकड़ी का पुल देख रहे हैं, उसी से जाना होगा उस पार", टैक्सी ड्राइवर विकास ने कहा तो हम तुरंत तैयार हो गए।
सड़क से नीचे उतरते एक संकरे से कच्चे रास्ते पर चलते-चलते लकड़ी के पुल पर कदम रखा तो अपने आसपास बिखरी कुदरत की ख़ूबसूरती में जैसे खो से गए। दोनों तरफ ऊँचे-ऊँचे आकाश छूते चीड़ के पेड़ और पुल के नीचे से बहती धारा । पुल के उस पार घने जंगल से होते हुए गाँव का रास्ता, चट्टानों के नीचे बहुत करीब से बहती शीतल धारा और बस डाल दिया डेरा हमने कुछ देर के लिए वहीं ... बेहद करीब से देखकर भी नदी तक पहुँचने का हौसला नहीं हुआ .. एक तो वेग बहुत तेज और साथ ही चट्टानों से उतरना-चढ़ना बिना किसी संसाधन के दुष्कर लगा । दूर से ही अपनी और कैमरा की आंखों को तृप्त कर हम लौट चले अपनी टैक्सी के पास, पर एक स्नेहिल आलिंगन (hug) तो बनता ही था सबसे ऊँचे वृक्ष का, मानो किसी बुज़ुर्ग का स्नेह और आशीष मिला 😊❤
       भुंतर लौट आये थे शाम 5 बजे तक और विकास ने ज़िक्र किया नेचर पार्क का तो राजवीर से बात कर कॉटेज पर रुके बिना ही 2.5 km आगे नेचर पार्क के गेट पर ही ब्रेक लगे टैक्सी के । बंद होने का समय 7:30 था तो झट से एंट्री टिकट लेकर घुस गए। पहली नज़र में बच्चों के खेलने का बगीचा ही लगा पर घूमते-घूमते आख़िरी छोर पर पहुँचे तो दिल खुशी से उछल पड़ा ... बस एक रस्सी के पार हमें अपने करीब आने का आमंत्रण दे रही थी मंद-मंद मुस्कान बिखेरती पार्वती नदी (यहाँ प्रवाह कुछ धीमा रहता है) मानो थिरक रही हो हौले-हौले प्रकृति के मधुर संगीत की धुन पर । उस मीठी मनुहार को भला कैसे नकारते, तो पहुँच गए हम रस्सी के नीचे से और जा बैठे पार्वती की गोद में 😊 मंद-मंद बहती हवा और स्नेहिल स्पर्श लहरों का, वक़्त भी जैसे सुकूँ के पल बिता रहा था हमारे साथ ....
      इस बीच युवाओं का समूह अपने एक साथी के टूटे दिल को जोड़ने की भरसक कोशिश में लगा था, संसाधन क्या थे, शायद कहने की आवश्यकता नहीं ... जिसकी चाहत में दिल्ली से मनाली तक का सफर किया, उसे उसी के दोस्त का साथ भा गया, ऐसी जानकारी एक बड़बोले साथी ने दी हमें बातों-बातों में 😃
       
#Kiran

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