कैसे भुलाओगी ?

मैं निरंतर चलती रही,
सोचा जब बहुत दूर निकल जाऊँगी
तब थक जाएंगी एक दिन तुम्हारी यादें भी
मेरे पीछे आते-आते
और तुम,
तुम ठहर जाओगे,
थोड़ा सुकून पाओगे,
और शायद मुझे भी थोड़ा सुकून मिल जाए ।
तुमसे सब साझा किया
बस अपनी बेचैनी अपने तक सीमित कर लेनी चाही
मगर तुम भी कम ज़िद्दी नहीं
मेरे दूर जाते हर कदम के साथ
तुम धीरे-धीरे मुझमें सिमटते गए
खुद को थोड़ा-थोड़ा मुझमें घोलते गए
सच ही कहा था तुमने ..
"मैं साया हूँ तुम्हारा,
यूँ हाथ न छुड़ा पाओगी।
मैं तो हर शै में मुस्कुराऊंगा
फिर कैसे भुलाओगी ?"

#किरण

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