रवायत (मुक्तक)

तपिश में फेर ली उसने निगाहें जब
करें फिर आरजू क्या छाँव की भी तब
ज़माने की ‘किरण’ देखी रवायत ये
रुलाया है उसी को जो दुःखी है अब
©विनिता सुराना 'किरण'

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