क्षणिकाएं



जीवन  
न अपना कभी
आज या कल
सिमट जाएगा एक दिन
आगोश में समय के
बनकर
मीठा छल !

वो
हसीं ख्वाब सा
पलकों में पला
चाँदनी में खिला
ओस की मानिंद
सौगात भोर की
या धोखा नज़र का !
©विनिता सुराना 'किरण'

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