क्षणिकाएँ

परिचय
पहचान
आदत
जरुरत
मुहब्बत
इबादत
.......
सफ़र तो यक़ीनन लम्बा होगा !
यूँ भी "आम" से "ख़ास" होना आसान कहाँ ?

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हाँ जला दिये
कल शाम होली में
जितने भी थे
शिक़वे-गिले तुझसे
ऍ ज़िन्दगी !
चल आ आज गले मिलते हैं
और रंग लेते हैं
इक दूजे को
दोस्ती के रंग में
मुहब्बत के रंग में !

********

साँझ ने खोला है घूँघट
या सहर ने दस्तक दी है
तेरे इंतज़ार में
समय का हिसाब
कब रखा है हमने !

********

"ज़वाब" तुमने भी नहीं दिया...
"सवाल" हम भी नहीं भूले !
जाने ये इन्तज़ार कब ख़त्म होगा ?
या फ़िर किसी दिन
जब "ज़वाब" आये,
ये "सवाल"
बस सवाल ही रह जाए .....

*********

उनींदी आँखों में उतरा
ख़ूबसूरत सा ख़्वाब
और जी उठा
ये तन्हा मन
रात गुज़री ...जैसे पलछिन,
ख़ुमारी थी कुछ अज़ब सी
जो सुबह तक तारी है
मानो कह रही हो
'किरण', अब तुम्हारी बारी है !

*********

अज़ीब कश्मकश है !
कुछ दिल को नहीं भाता ...
कुछ दिमाग़ को नहीं मंज़ूर
कभी ज़ुबाँ ख़ामोशी ओढ़ लेती है
तो कभी आँखों में किर्चियाँ चुभती हैं ।
सब मनचाहा नहीं होता ...
मेरा ज़मीर क्यों नहीं सोता !

**********

शाम ने कहा,
विराम हूँ पर अल्प,,,,
विश्राम हूँ पर अल्प ...
आती हूँ ठहरती नहीं ...
जाती हूँ फिर आती भी हूँ ....
जब तक तुम नहीं ठहरती,
मैं भी सफ़र करती रहूँगी ।
दो घड़ी तो तुम भी सुस्ताओं,
मैं भी सुस्तालूँ ।

**********

चुभने लगीं
जब किर्चियाँ
अपने ही ख़्वाबों की,
फ़िर कहाँ
सोई ये आँखें ...

***********

कहा था न तुमने
"ये बूँदें जब-जब छुएंगीं
मुझे महसूस करोगी"
आज फिर बरसी हैं बूँदें
एहसास बनकर ..
कश्मकश में हूँ !
कैसे अदा करूँ इनका शुक्रिया ?
कभी तुम्हारे आने का बहाना थी
और अब बस मुझे सताने का...

********

काश !
कोरे पन्ने पर
पेंसिल से लिखे
अल्फ़ाज़ सी होती
यादें तुम्हारी..
मिटा देती उन्हें
रबड़ से
और लिख देती
अलविदा !

*********

वो मीठा सा एहसास
अब भी तारी है
मन है कि आगे बढ़ता ही नहीं
कदम यूँ थमे
कि वक़्त ने छोड़ दिया साथ
बस मैं हूँ
मेरा पागल मन
और तस्सवुर में
तेरा ख़्याल !

**********

न ख़्वाहिश
न मन्नत
बस तुम
तुम्हारा एहसास
और
डूबे-डूबे से
हम !

*********

कुछ दर्द हैं
एहसास भी
हम दूर हैं
कुछ पास भी
कुछ बात है
कुछ ख़ास है
इक डोर है
जो थाम के
हम मिल रहे हैं
आज भी >>>>>

**********

अनजान तो नहीं थे मेरे ख़्वाबों से
पर हिस्सा भी नहीं बने तुम
दिन में मसरूफ़ियत
रात में ख़्वाब बेगाने...
आख़िर मुलाक़ात होती भी तो कहाँ !

********

बिंदी भी है
काज़ल भी
लाली है ...
मांग में ,
लबों पर ,
आँखों में भी !
अजब सा नशा है
पर फिर भी 'किरण'
कुछ तो अधूरा सा है....
मन पर आज पहरा सा है !

*********

सितारों का मुस्कुराना
और
तुम्हारा लौट आना
क्या महज़ इत्तफ़ाक़ है ?

*********

कम या ज्यादा
कहाँ तोला कभी
कुछ भीगे लम्हें
कुछ अनदेखे ख्वाब
मुट्ठी भर ख्वाहिशें
चंद क़तरे एहसास के
और कुछ मीठी यादें तुम्हारी
बस......
यही तो पूँजी है मेरी !

*********

निर्लज्ज हो तुम एं 'अश्क़'
बिन बुलाये महमान से
तभी आँखें भी
पनाह नहीं देतीं तुम्हें !

*******

लबों से आँखों तक
मुश्किल है सफ़र
मुस्कान का,
और तुम आसानी से
ढुलक जाते हो...
उसे मंजिल चाहिए
और तुम ठहरे बंजारे !

********

बात ही बात में
यूँ बात चली
तुम्हारी बात
हमारी बात
इसकी बात
उसकी बात
तो बे-बात ही
कुछ ऐसी बात हुई
और बात-बात में
बात ऐसी बिगड़ी
कि बात भी न हुई
अब क्या बात करें
कैसे छेड़े फिर बात
कि बात बन जाए !

*******

गरजते बरसते घन
रोता हुआ छप्पर
ठिठुरते मासूम
तैरते कुछ बर्तन
हाथों में इकलौती फटी चादर
और अनिश्चय का भाव लिए
माँ की बेबस आँखें ।

******

बंज़र जमीन का तमगा,
परित्यक्ता का अभिशाप,
वो काली अँधेरी रात
गूँजी थी उसकी चीखों से
तार-तार हुआ आँचल,
फिर नया सवेरा
एक नन्ही किरण लिए गोद में
सोच रही है
क्या सच और क्या झूठ?

*******

नव-अंकुर फूटा
चहकी बगिया
हरी हुई है गोद
दूर हुआ सूनापन
पर बुलबुले सी ख़ुशी
हो गयी धूमिल,
लौटा है माली
लिपटा हुआ तिरंगे में
सरहद से ।

********

पलके बिछाए
तकती रही सूनी सड़क
मुसाफिर न लौटा
बस भेज दिया ख़त
कुछ लाल-हरे कागज़
और इंतज़ार
एक और माह का ।

********

©विनीता किरण

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