अपनी बात

सफ़र चाहे कोई भी हो , एक मोड़ पर यू-टर्न लेता है ! ज़िन्दगी का सफ़र भी कुछ ऐसा ही है । उम्र के एक मोड़ पर हम स्वयं जब पीछे मुड़ कर देखते हैं तो लगता है शायद हम कुछ और भी जोड़ सकते थे अपनी ज़िन्दगी में । वक़्त की राह पर पीछे लौटना तो मुमकिन नहीं होता परंतु फ़िर भी कुछ पगडंडियां ऐसी होती हैं, जो पुल बनाने का काम करती हैं ... हम कुछ ऐसे अवसर तलाशने लगते हैं जो वर्तमान में भी माज़ी से जोड़ देते हैं वो भी नए कलेवर में । ख़्वाब पुराने होते हैं पर रंग नए और यक़ीन कीजिये ये नए रंग भी सुखद अनुभूति देते हैं , नया हौसला देते हैं , नयी उड़ान देते हैं .. बस हमारे जागने भर की देर है !
       बहुत बार कहा गया है माज़ी को पीछे छोड़कर ही भविष्य की ओर क़दम बढ़ सकते हैं , परंतु मेरी सोच ये है कि माज़ी को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करना ज्यादा अच्छा है क्योंकि वो अपूर्ण ख़्वाब या ख़्वाहिशें नए रूप-रंग में आ जाएँ तो ख़ुशी और संतुष्टि दोनों देंगी।

©विनीता सुराना 'किरण'

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