लोकतंत्र

दो उद्दंडी बालक उलझ गए किसी बात पर ...एक ने उकसाया तो दूसरे ने कीचड़ में धक्का दे गिरा दिया । फिर तीसरा आया कीचड़ वाले को उठाया और लगा मदद करने कीचड़ हटाने में ...ले आया एक बाल्टी पानी और उड़ेल दिया उस पर ...पर ये क्या पानी भी एक गंदले तालाब का था तो क्या हश्र होना था ? कीचड़ तो कीचड मिट्टी और मैला सब लपट गया । फिर जिसने देखा अपनी-अपनी राग अलापी...पंचायतें बैठी..बयानबाज़ी और छद्म फ़ैसले  भी ..फिर एक पंच ने सोचा और कहाँ मौका मिलेगा अपनी कुर्सी मजबूत करने का !!!! पंचायतों की ऐसी तैसी... अपन किस राजा से कम ? बघार दी अपनी जाकर बड़े शहर की अदालत में ...कीचड़ का क्या कहीं भी मिल जाए क्या कमी है भाई चाहे जहाँ फैलाओं ...लोकतंत्र है पूर्ण आज़ादी !!!!

©विनीता किरण

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