पञ्च चामर छंद (नीर)


बहा न व्यर्थ में कभी सहेज नीर को ज़रा
बुझे न प्यास तो उजाड़ हो हरी-भरी धरा
न धार नीर की रहे न सांस एक भी चले
रहे न वृक्ष भी कहीं न ज़िन्दगी कहीं पले
©विनिता सुराना 'किरण'

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