सुनो साथी (गीत)



सुनो साथी हवा क्या गुनगुनाए
फिज़ा भी साथ में जब सुर मिलाए

पपीहे ने पुकारा है, कहाँ हो
कि सूना हर नज़ारा है, कहाँ हो
कटे दिन बेकरारी में सभी अब
कि अब तो चाँदनी भी है सताए
सुनो साथी .......

नहीं बहले खतों से बावरा मन
कि बरखा भी जलाने अब लगी तन
उठे है हूक सी दिल में कभी जब
विरह के गीत कोयलिया सुनाए.
सुनो साथी .....

लगे फीकी रंगोली चौक में क्यूँ
नहीं भाते मुझे झूले भला क्यूँ
सभी है साथ पर फिर भी न जाने
नहीं तुम साथ तो सब है पराए.
सुनो साथी .......
©विनिता सुराना ‘किरण’

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)