पञ्च चामर छंद (चले चलो )


चले हज़ार आंधियाँ रुको नहीं डिगो नहीं |
न छोड़ हौसला कभी कि राह है यहीं कहीं ||
निशान छोड़ते चलो कि कारवाँ चला चले |
न संग हो कभी सभी कि मित्रता फले पले ||
©विनिता सुराना 'किरण'

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