रात की डायरी

वक़्त के धोरों में
आंच सी महसूस की है अक्सर
यादें अक्सर करवट बदल कर
सरक आती हैं थोड़ा और क़रीब
बेचैन सिलवटों में लुका-छिपी खेलती
कितनी ही ख़्वाहिशें
हर रात लिखा करती हैं
तुम्हारा नाम
क्या कभी लौटाएगा ये वक़्त
'तुम्हें' ?

©किरण

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