एक मुलाक़ात रंगों से

आज होली है न !
आओ चलो
कुछ क़दम मेरे साथ
तुम्हें मिलवाना है आज
उन सारे रंगों से
जो घुले हैं मुझमें....

थोडा सा जामुनी
मेरी पलकों की दहलीज़ पर ठहरे
उन अनदेखे ख़्वाबों का,
जिन्हें अब भी इंतज़ार है तुम्हारा..

आड़ी-तिरछी सी गहरी नीली धारियाँ
जैसे ज़ुबाँ देने की कोशिश करती
उन दबे से एहसासों को
जो जीते हैं कहीं गहराई में
पर कभी बयाँ न हो पाएं...

छितरा हुआ सा आसमानी नीला
उन मासूम ख़्वाहिशों का
जो यूँ तो आशना हैं रूह से मेरी
फ़िर भी रहा करती हैं बेख़ुदी में
बस जी उठती हैं
कुछ देर के लिए
तुम्हारा साथ पाकर....

कुछ बूँदें अज्ला (चमकदार) हरा
जो बिखरने नहीं देता मेरी उम्मीदों को,
उस नयी सुबह की
जो हर लंबी स्याह रात के बाद आती है...

कुछ नम सा पीला
उस ऐतबार का,
जो दिल के किसी कौने में आज भी महफ़ूज़ है,
कि तुम्हें भी आरज़ू है मेरे साथ की..

कुछ रेखाएं उजास नारंगी
जो अक़्सर आवाज़ देती हैं
उन ख़ामोशियों को
जो पसरी हैं मेरे आसपास यूँ ही...

और ढेर सारा खुशबूदार सुर्ख़ क़िमिर्ज़ि (लाल)
उस मुहब्बत का
जो पुरज़ोर बहा करता है
मेरी रगों में
भिगोता है मेरी रूह को
फ़िर-फ़िर
जब भी तन्हाईयाँ बेचैन किया करती हैं ...

जाने कितने रंगों से मुलाक़ात अब भी बाकी है
पर फ़िर कभी मिलना उनसे
क्योंकि अरसे बाद मिले हो तुम
और आज अभी बस तुम्हारे रंग में
रंगना चाहते हैं हम सब,
मैं, मेरा मन और मेरी तश्ना रूह !
©विनीता सुराना 'किरण'

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

कहानी (मुक्तक)