लाल जोड़ा (कहानी)

विवाह का लाल जोड़ा हर लड़की का सपना होता है, जिसे वो खुली आँखों से देखा करती है | वही लाल जोड़ा सुमन के लिए श्राप बन गया था ..... आज वो दुल्हन बनने जा रही है पर न उसकी डोली को कंधा देने के लिए उसके बाबा होंगे न गले लगाकर नम आँखों से विदाई देने के लिए माँ, बहन, भाई या सखियाँ ही होंगी | हर दुल्हन की तरह, आने वाले कल के लिए उसकी आँखों में सुनहरे सपने नहीं बस आँसू झिलमिला रहे हैं, और याद आ रहा है वो मनहूस दिन जब उसके कस्बे में शहर से पूरे तीन साल बाद सुरजा काकी का बेटा ब्रिज आया था | हर महीने काकी को मनी आर्डर भेजने वाला ब्रिज जब स्वयं आया तो सारा क़स्बा उसके स्वागत में लग गया जैसे उनका अपना बेटा आया हो | उसी शाम भक्ति संगीत के आयोजन में मंदिर में सुमन और ब्रिज का आमना- सामना हुआ...... सांवली पर तीखे नैन-नक्श वाली सुमन को ब्रिज देखता ही रह गया और उसकी सुरीली आवाज़ ने तो पूरे कस्बे पर पहले से जादू किया हुआ था | एक गरीब किसान की चार संतानों में सबसे बड़ी सुमन सारे कस्बे की लाडली थी, संगीत का कोई भी आयोजन उसके बिना अधूरा माना जाता था |
अगले ही दिन ब्रिज उसके घर पहुँच गया सुमन के लिए शहर में एक संगीत आयोजन में भाग लेने का न्योता लेकर | १०००० रुपये पेशगी बाबा के हाथ में थमाते हुए आखिर उनको मना ही लिया....अगले महीने धनतेरस से ठीक एक सप्ताह पहले का दिन तय हुआ ब्रिज के साथ सुमन को शहर भेजने के लिए | भारी मन से सुमन विदा हुई ये सोचकर कि उसका संगीत शायद उसके भाई-बहनों का जीवन सँवार दे | शहर की भीड़-भाड़ और चकाचौंध में अजनबी सी सुमन अभी कुछ समझ भी नहीं पायी थी कि उनकी टैक्सी एक चमचमाती हवेली के सामने जा रुकी | ब्रिज उसे कार्यक्रम के आयोजक से मिलवाने की कहकर यहाँ लाया था, अन्दर आते ही एक महिला आई और सुमन को अपने साथ ले गयी | असमंजस में सुमन ब्रिज से कुछ पूछ पाती उससे पहले ही ब्रिज जाने कहाँ गायब हो गया था | एक जोड़ी नए वस्त्र और थोडा सा नाश्ता देकर महिला चली गयी कमरे का दरवाज़ा बंद करके | कुछ देर में लिवाने आई और हवेली की बैठक में सुमन को ले जाकर बैठा दिया जहाँ कई जोड़ी नज़रें उसे सर से पाँव तक तोल रही थीं जैसे उसकी सही कीमत आँकी जा रही हो |
धनतेरस को वैसे तो शगुन के तौर पर चाँदी के सिक्के, बर्तन आदि खरीदने का रिवाज है पर एक दुनिया ऐसी भी है जहाँ शगुन के तौर पर कच्ची उम्र की लड़कियों की खरीद-फ़रोख्त होती है ताकि अविवाहित, विधुर या निस्संतान अधेड़ अपनी वंश वृद्धि कर सकें एक अदद लाल जोड़े की आड़ में .... जिसके लिए सुमन सरीखी गरीब परिवारों की छोटे कस्बों की न जाने कितनी ही लडकियाँ दाम चुकाकर लायी जाती हैं और ब्रिज जैसे दलाल एक मोटी रकम का छोटा सा हिस्सा उनके माँ-बाप को देकर खुद अपनी जेब गरम करते हैं | ऐसे ही लाल जोड़े के कफ़न में लिपटी बैठी थी सुमन आँखों में आँसू लिए, तभी एक तेज़ साइरन की आवाज़ और फिर उसके कमरे का दरवाज़ा खुला और दो महिला कांस्टेबल अन्दर आई ....पुलिस के छापे ने सुमन की दुनिया अँधेरी होने से बचा ली उस दिन पर न जाने कितनी ही सुमन उन अंधेरों में अब भी भटकती होंगी और लुटती होंगी इन अमानवीय रिवाजों की आड़ में एक अदद लाल जोड़े की कीमत पर .......
©विनिता सुराना किरण

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