ज़ायके से जश्न-ए-बहारा तक

ज़ायके से जश्न-ए-बहारा तक 

मांडलगढ़ दुर्ग से वापसी का सफ़र उतना ही आसान रहा जितनी चढ़ाई दुरूह लगी थी, कारण ये कि जिस राह गए थे उससे कहीं आसान वो रास्ता था जिससे हम लौट रहे थे। लौटने की राह हमने अनजाने ही अलग चुन ली थी जैसे कोई राह दिखा रहा हो ... दुर्ग के बाहर चट्टानों पर मंद बहती शीतल हवा का अहसास लौटते हुए भी साथ रहा और हम बढ़ चले थे अपने अगले पड़ाव चित्तौड़गढ़ की ओर । अलसुबह के सफ़र में कुदरत के जलवे हज़ार हों पर एक कमी शिद्दत से खलने लगी थी अब कि कहीं कुछ खाने के लिए नहीं दिखा था अब तक। साथ में परांठे, अचार, नमकीन, मीठा, बिस्कुट, चिप्स सभी कुछ था पर हम स्ट्रीट फूड तलाश रहे थे जिसका मज़ा सिर्फ रोड ट्रिप पर ही सबसे ज्यादा आता है 😍😋
                फिर आया वो मोड़ जहाँ से स्टेट हाईवे की ओर मुड़ना था। ब्रिज के नीचे से रास्ता कट रहा था चित्तौड़ के लिए और ठीक उसी ब्रिज के नीचे कढ़ी-कचौरी, कढ़ी-समोसे की स्टॉल से आती मनभावन खुशबू ने गाड़ी के ब्रेक स्वतः लगवा दिए☺️ गरम कचौरी, समोसे छोले चटनी और उबलती हुई राजस्थानी कढ़ी के साथ, इससे बढ़िया दिन की शुरुआत हम राजस्थानियों के लिए क्या होगी 😃 तो बस लगा ली गाड़ी साइड में और बहुत से मुसाफिरों में हम भी शामिल हो गए दिन की पहली दावत में (मात्र 10 रुपये में इतना बढ़िया स्वाद किसी रेस्तरॉ में तो संभव नहीं) जीभ और पेट तृप्त हुआ और मन की तृप्ति के लिए संगीत था ही और आंखों को सुकून दे रहे थे कुदरत के रंग जो आसमां से ज़मीं तक हर सु बिखरे थे किसी ख़ज़ाने की तरह 💖
                अरावली की घाटियां अब भी साथ चल रही थीं हमारे और साथ चल रहा था खूबसूरत रास्ता जहाँ दोनों ओर थे हरे-भरे पेड़। चित्तौड़ कब पहुँच गए इस खुमारी में जैसे पता ही नहीं चला। सामने था दुर्ग का रास्ता और सड़क पर लगी खुदाई की मशीन देख हमारी हँसी छूट गयी। यहाँ भी एक अवरोध ! 🤣 तभी एक ट्रैफिक हवलदार ने इशारे से दाई और से मुड़कर निकलने का इशारा किया जहाँ से घूम कर फिर उसी सड़क पर निकल आये और हम आगे बढ़ चले दुर्ग की ओर ! 
                लगभग 18 किलोमीटर के दायरे में पसरा चित्तौड़गढ़ दुर्ग खंडित भले हो, अभेद्य भले न हो मगर आज भी उसी राजपूती शान से मस्तक ऊँचा किये सैलानियों, इतिहास के विद्यार्थियों और हम जैसे यायावरों को लुभाता है। अभी गेट तक पहुँचे भी नहीं थे कि गाइड अपनी सेवा देने को आतुर हमारी गाड़ी के दोनों ओर से धावा बोलने लगे। "सर, मैडम गाइड लीजिएगा बिल्कुल फ्री है बस किले का एंट्री टिकट ही लेना है आपको.." ( हम हिंदुस्तानी फ्री में भीख भी नहीं देते, बदले में दुआएँ लेते हैं और यहाँ फ्री में गाइड ! बात कुछ हज़म नहीं हुई 😜😆) टिकट खिड़की पर पता चला ऑनलाइन ही उपलब्ध हैं टिकट तो ले लिए गए 35 रुपये के हिसाब से 2 टिकट 70 रुपये मात्र .. और तब सामने आया गौरखधंधा गाइडों का जो ऑनलाइन प्रक्रिया से अनजान सैलानियों को प्रति व्यक्ति 100 रुपये में टिकट उपलब्ध करवा रहे थे अपने नाम से ऑनलाइन बुकिंग करके और फ्री गाइड की सुविधा के लालच में अनेक सैलानी उनके चंगुल में हमारे सामने ही फँसते हुए दिखे 🙄 
                  तो अब हम बढ़ रहे थे सबसे पहले म्यूजियम की ओर मगर ये चटोरी जिह्वा उफ़्फ़ ! सामने गोलगप्पे हों और हम नज़रंदाज़ करके आगे बढ़ जाएं ? इस नाइंसाफी के लिए गोलगप्पे हमें कैसे माफ करेंगे, इसी डर से हम पहले चल दिये गोलगप्पे के खोमचे की ओर 😜😋😃

#रोड_ट्रिप_यायावरी

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)