लो सफ़र शुरू हो गया

लो सफ़र शुरू हो गया !

रोशनी की पहली किरण के साथ 'किरण' का सफ़र शुरू हुआ, चार पहिये, संगीत और दो यायावर 😊 हाँ सैलानी नहीं यायावर क्योंकि हम निकले थे रोड ट्रिप पर ...पड़ाव तो अनगिनत होने थे पर तय कोई भी नहीं । एक पड़ाव तय था महाबलेश्वर, न उसके पहले का कोई प्लान न उसके बाद का, बस कुदरत के साथ की चाह लिए मन में हम निकल पड़े थे घर से । एक उनींदी सी रात के बाद आई ख़ुशनुमा सुबह के सनराइज से शुरू हुआ ये रोड ट्रिप रोमांचित कर रहा था और मन प्रफुल्लित था जैसे पंछी आज़ाद हुए हो पिंजरे से . न न घर नहीं है पिंजरा, बल्कि पिंजरा था वो 2020 की अनचाही बंदिशें, जिसने अपने पहले प्यार कुदरत से दूर कर दिया था, यायावरी(जो सांसें हैं मेरी) पर अंकुश लगा दिया था। रास्ते में पहला पड़ाव तय हुआ  चित्तौड़गढ़ किला पर हमें मांडलगढ़ की धरती या कहूँ गलियाँ पुकार रही थीं धीमी सी मगर कशिश भरी आवाज़ में ... हाईवे पर आगे बढ़ते हुए कब हम मांडलगढ़ के रास्ते पर मुड़ गए और बढ़ चले थे गाँव की ओर, मांडलगढ़ किले की ओर जाने वाली सड़क पर मगर पहले ही पड़ाव पर रुकावट बन गया सड़क सुधार कार्य, जहाँ से किले की ओर बढ़ना था वहाँ तो हमारे सामने ही सड़क को खोदने के लिए मशीन लगी हुई थी, थोड़ी निराशा हुई कि पहले ही पड़ाव पर रुकावट, जाने आगे का सफ़र कैसा ... पर नहीं यायावरी में इतना तो सीखा है कि खूबसूरत हो मंज़िल तो रास्ते आसान नहीं हुआ करते , तो बस ठान लिया किले तक तो पहुँचना ही है पर उससे पहले जरूरत थी एक कप अदरक वाली मसाला चाय की तो सामने की थड़ी के पास गाड़ी खड़ी करके चाय वाले काका से दो कप चाय की गुज़ारिश की और फिर किले की ओर जाने वाले लंबे रास्ते का पता चाय के साथ बिल्कुल मुफ़्त मिला, खुशी इतनी थी कि जब काका ने 10 रु की चाय के 15 रु वसूले तो ज़रा भी दुःख नहीं हुआ 😋
            चाय वाला पेट्रोल मिलते ही हम निकल पड़े किले की ओर जाने वाले गांव की गलियों से होते हुए लंबे रास्ते पर... अवरोध यहां भी कम नहीं थे, कहीं मोटरसाइकिल, तो कहीं घरों के बाहर खेल रहे बच्चे, तो कहीं घरों के दरवाजों के आगे निकल आयी पत्थरनुमा सीढियाँ.. दुपहिया वाहनों के लिए बनी गलियों से हम डस्टर ले जा रहे थे और दिल में धुकधुक थी कि कहीं नए टायरों का बैंड न बज जाए 😔 ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर बढ़ते हुए और कांटों भरी झाड़ियों से बचते-बचाते आखिर गांव के शिव मंदिर तक गाड़ी पहुंच गई और बाहर से ही शिव जी को मनाते हम पैदल चल पड़े किले की ओर ..
                बचपन से पुराने खंडहर, किले और महल लुभाते रहे हैं मगर सिर्फ कारीगरी और स्थापत्य कला के लिए ही नहीं बल्कि उस नयनाभिराम दृश्य के लिए जो उस ऊंचाई पर जाकर ही देख सकते हैं, खासकर उस रोमांच के लिए जो वहाँ पहुँच कर महसूस होता है जैसे आसमान के थोड़ा करीब पहुँच गए हों। टूरिज्म विभाग के नज़रों-करम से महरूम किले नुमा खंडहर की दुर्गति देख कर दुःख हुआ और पशुघर में लगभग परिवर्तित हो चुके किले से बाहर आने से पहले फ़क़त एक नज़र झरोखों से नीचे बसे गांव की ओर डाल हम जल्दी ही बाहर आ गए । तभी दाई ओर की समतल चट्टानों पर नज़र गयी और जिज्ञासा हुई कि वहाँ से क्या नज़ारा दिखेगा। खुली हवा में साँस लेते उस दुर्गंध को पीछे छोड़ते चट्टानों के दूसरे छोर पर पहुँचे तो नीचे का दृश्य देख तबियत खुश हो गयी ... अरावली की पहाड़ियों के बीच इठलाती छोटी सी झील और दोनों तरफ बसे गांव के कच्चे-पक्के घर ! पिछले दिनों हुई बारिश से धुली चट्टानें निमंत्रण दे रही थीं, "कुछ पल हमसे भी बतिया लो, जाने फिर कब मुलाकात हो !" इस मुलाकात की यादें कैमरे में लिए लौट चले थे हम अपने अगले पड़ाव की ओर ...

#रोड_ट्रिप_यायावरी

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