तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे !

कभी नहीं समझ पायी कि बचपन से ही मुझे संगीत से लगाव क्यों है ... बस जैसे मेरी दिनचर्या में शामिल है संगीत ...तभी तो कुदरत की हर शय में सुनाई देता है संगीत ! 
जब भी कोई खूबसूरत गीत सुना रेडियो पर तो लगा या तो मैं गा रही हूं किसी के लिए या कोई मेरे लिए गा रहा है। कोई रूमानी गीत बजता तो सारा समां रुमानियत से सराबोर हो जाता, कोई विरह गीत बजता तो ख़ुद-ब-ख़ुद आंखें नम हो जातीं, कोई नृत्य गीत बजता तो कदम ख़ुद ही थिरकने लगते । अब जब सोचती हूँ तो लगता है कुछ भी बेवज़ह नहीं था, बस एक ज़रिया था 'तुम' को महसूस करने का अपने आस-पास। जैसे-जैसे वक़्त गुज़रता गया, ये अहसास और भी मुखर होता गया कि कोई कहीं है जो मुझसे जुड़ा है, जो मेरे लिए है, मेरे जैसा है और मुझे पूरा करता है ।
            अपने ही ख्यालों में डूबी मैं जब कभी वो गीत गुनगुनाती तो अक्सर मन वहाँ ले जाता, जहाँ कुदरत की गोद में लेटे मैं 'तुम्हारी' आंखों में कितने ही प्रेम पत्र पढ़ लेती और उनके जवाब भी लिख देती अपनी उंगलियों से ... हर स्पर्श एक अलग हर्फ़ उकेरता और तुम उतनी ही आसानी से पढ़ भी लेते, उसमें छुपे कितने ही एहसास ... आख़िर ये हमारी ही तो गढ़ी हुई भाषा थी, महज़ एक हल्का सा स्पर्श भी इतना कुछ कह जाता जिसकी व्याख्या शायद कोई 200 पृष्ठ की पुस्तक भी न कर सके ।             
         आज से पहले कभी कहाँ समझ पायी कि उस गीत के इतने मायने क्यों थे मेरे लिए, कि कहीं सबसे भीतर का कोना तक भीग जाता उसकी फुहार में, मौसम कैसा भी हो पर रिमझिम का सा एहसास देर तक, दूर तक भीगो जाता। आकाश की चादर में टंके सारे सितारे मेरे साथी बन चुके थे जिनसे घंटो बतियाते कितनी ही रातें सहेजती गयी अपनी डायरी के कोरे कागज़ों में ताकि अगर किसी दिन किसी मोड़ पर अचानक मिल जाओ 'तुम' तो तोहफे में दे सकूँ अपने सारे अल्फ़ाज़ और 'तुम' जीयो मेरे साथ वो सारे अहसास ..
     आज अरसे बाद जब 'तुम' अपने पसंदीदा गीत गुनगुना रहे थे मैं सोच-सोच बस मुस्कुराती रही कि मेरी पसंद का हर गीत तुम्हारी पसंद में भी तो शामिल है । फिर अचानक तुम्हारी ज़ुबाँ से वही गीत निकला और वो मेरी स्मृतियों की कैद से रिहा हो गया, साथ ही रिहा हो गए कुछ रंग, कुछ लकीरें, कुछ हसरतें और वो भीनी सी ख़ुशबू जो अक्सर शाम से ही मुझे अपने आगोश में समेट लिया करती थी और फिर रात की चादर में लिपटे ख़्वाब भी महक उठते थे। हर सुबह वो अजीब सी कशिश मुझे बेचैन कर देती और मैं बेसब्री से फिर इंतज़ार करती एक और शाम का ....
          कभी अनजाने-अनदेखे हमसफ़र के साथ गाए उस गीत को आख़िर उसके सही मुक़ाम तक पहुँचा ही दिया 'तुमने'.. देखो हवा गुनगुना रही है वही गीत आज और मैं तुम्हारे आग़ोश में बैठी बस तुम्हारी धड़कनों का संगीत सुन रही हूं, तुम्हारे स्पर्श में मुखर हो रहे है वो सारे जज़्बात जो कभी सिमट गए थे मेरी डायरी में ख़ुशबू बनकर पर सुनो तुम्हारी ख़ुशबू तब भी वाबस्ता थी मेरे शब्दों में तभी तो मीलों दूर से तुम्हारी ख़ुशबू से तुम्हें पहचान गयी मैं ... गीत के शब्दों को मायने मिल गए आज !

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वो बहारें वो चांदनी रातें
हमने की थी वो प्यार की बातें
उन नज़ारों की याद आएगी
जब ख्यालों में मुझको लाओगे
हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे
संग संग तुम भी गुनगुनाओगे

🎶🎵🎶🎵

#सुन_रहे_हो_न_तुम

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