धीमी आंच

उन्मुक्त बहा करते हैं अहसास
अपने ही तटबंध गढ़ते हैं रोज़ कच्ची मिट्टी से 
तोड़कर पुरानी वर्जनाएं ..

इश्क़ के जुनून पर सवार 
वो बेक़ाबू लहर,
समेट लेती है अपने आग़ोश में 
सिमट जाती हैं दूरियां 
पल भर में ..

तेज़ी से बढ़ते हैं कदम 
गलबहियों के बीच 
वो परिचित फिर भी नया सा स्पर्श 
उमड़ते हैं जज़्बात
गहराई में तलाशते हैं 
कुछ और नए अहसास ..

एक भरपूर समंदर है मेरे भीतर ...
जितना तीव्र उतना ही गहन 
ऊंचे उठते ज्वार जैसे ऊंचाई की नई परिभाषा गढ़ते 
हर बार, हर पुराने अभिलेख को तोड़ते हुए..
सराबोर करते हैं मेरे तन-मन को
मीठी और गुनगुनी छपकियों से
मानो बुझा रहे हों वो अमिट प्यास प्रेम की 
जो कुछ और बढ़ती जाती हैं
 'तुम्हारे' लिए हर बार ..

गीली नर्म रेत सहलाती है 
मेरे तलवों को 
तुम्हारे हमकदम चलते हुए
जगाती है जुनून
नस-नस में भर देती है बेचैनी
कतरे-कतरे में उठती है सिहरन 
मानो प्रत्याशित के लिए..

वो सिहरन की अनुभूति 
न मरती है न धुमिल ही होती है 
जैसे अग्नि बुझाने के बाद भी 
बस धीमे-धीमे सुलगती है निरंतर
राख में दबी आँच की तरह

बस कुछ ऐसी ही क्षुधा है मेरी भी 
तुम्हारे प्रेम के लिए,
'तुम्हारे' लिए !

💖किरण

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