साँझा कहानी

जहाँ तक जाती है नज़र,
ठहरती है जिस बीनाई* पर ,
वो साँझा है हमारी !

जिन ख़्वाबों को अक्सर ज़मीं दी है, 
हमारे ख़यालों ने खुली आँखों में,
वो साँझा हैं हमारे !

जो अहसास जीते हैं दिलों में,
जिन्हें स्वर देती हैं धड़कनें,
वो साँझा हैं हमारे !

जिन जज़्बातों से जुड़ता है मन,
जिनमें बसर है जिंदगी की,
वो साँझा हैं हमारे !

वो स्पर्श जिन्हें महसूस किया 
जिस्म के पार अंतर्मन तक
वो साँझा हैं हमारे !

कहाँ कुछ मुख़्तलिफ़** था,
कि दो कहानियां लिख पाती क़लम,
ये जो कहानी लिख रही हूं इन दिनों 
वो साँझा है हमारी !

बिल्कुल वैसे ही जैसे
तुम मेरे हो 
और मैं तुम्हारी !

#सुन_रहे_हो_न_तुम

*बीनाई - दृश्य , दृश्यावली 
**मुख़्तलिफ़ - भिन्न, अलग

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