आवारा बदली

हवा के पंखों पर सवार
आवारा सी बदली हूँ मैं 
अपने भीतर ज़ब्त किये अनगिनत मीठी बूंदों को 
किसी प्रेम-धुन की प्रतीक्षा में !

जब पसरा हो अंधेरा
और पुकारता है कोई एकाकी मन
मेरा मन भी होता है नम
और गिरती हैं ओस की बूंदें !

मेरे कानों तक नहीं पहुँचे
कोई खुशी के तराने
पर फिर भी गाती हूँ प्रेम गीत
कि तुम्हारे आँसू अपना रास्ता भूल जाएं !

नहीं जानती मेरे नसीब में क्या है..
प्यार भरी बाहों की गर्माहट
या फिर ताउम्र एक 'आवारा बदली' होना !

© विनीता किरण

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