मीरा माधव (2)

"कोई दो लोग इतने समान कैसे हो सकते ? पसंद, नापसंद, सोच, स्वभाव यहाँ तक कि ज़िन्दगी के अहम पड़ाव, हादसे और सफ़र भी ..."

"जाने क्यों ऐसा लगता है कि हम एक दूसरे का इंतज़ार करते, एक दूसरे के सांचे में अनजाने ही ढलते गए और जब मिले तो कुछ अलग रहा ही नहीं पर फिर भी कुछ तो है जो हमें एक दूसरे की ओर खींचता है । क्योंकि समानताएं मिला तो सकती हैं पर आकर्षण हमेशा विपरीत से होता है .."

"हाँ अलग भी तो हैं हम बहुत जैसे मुझे नींद में सुकून मिलता है तुम्हें रातों की आवारगी पसंद है, मुझे ज्यादा बातें नहीं पसंद और तुम चुप नहीं रहती.. मैं शर्म से कोसो दूर, तुम अब भी शर्मा कर शाम के रंग ओढ़ लेती हो पर जानता हूँ तुम्हें वो सब पसंद है जो मुझे बस कुछ वक़्त दो इश्क़ को, रंग लेगा तुम्हें भी अपने चटक रंगों में.. "

"ओह ! अच्छा तो वो जो रातों को घंटों जाग कर मुझसे बतियाता रहा वो तुम्हारा भूत होगा ... सच तो ये है कि कुछ तुम में कम था , कुछ मुझमें, फिर हम मिले तो ढलने लगे एक दूसरे के अक्स में । कुछ तुम बदले, कुछ मैं .. सब अनजाने ही हुआ यहाँ तक कि हम खुद नहीं जान पाए किस तरह !"

"तो अब इसे क्या कहा जाए ? इतेफाक़ या किस्मत कनेक्शन ... मुझे लगा तुम मेरे रंग में रंगने लगी हो और ये तो आभास ही नहीं हुआ कि मैं भी तुम्हारे रंग में रंगने लगा, वो छोटी-छोटी बातें जो मुझे कभी समझ नहीं आईं वो तुम्हारे साथ कैसे सहज हो गईं ... फ़ोन पर घंटों बतियाना, गाने सुनना सुनाना, अपनी हर एक बात बिना झिझक बस कह देना ... गानों की पसंद तक एक ही है हमारी तो, इन गानों के सिवाय और कोई गाने सुने ही नहीं, हमेशा खुद के लिए गुनगुनाया पर अब तुम्हारे लिए गाता हूँ या शायद तब भी तुम्हारे लिए ही गाया करता था जब तुमसे मिला भी नहीं था।"

"हम अलग-अलग सिरों से चलकर एक ही मोड़ पर जो मिलने वाले थे ... कुछ तुम मेरे जैसे थे, कुछ मैं भी तो तुमसी थी, पर ये जो इश्क़ है न इसके अपने रंग होते है, अब वही रंग घुल रहे हैं तुममें भी मुझमें भी ! "

सुन_रहे_हो_न_तुम

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