अकेले हैं चले आओ जहाँ हो

जब पिछली बार पहाड़ों में गयी तो खूब बारिशें हुई ... कितना फ़र्क़ दिखा शहर की बारिश और पहाड़ की बारिश में .. पहाड़ों की बाहों से फिसलते झरने और उनसे निकलता मधुर संगीत और संग गूंजते तराने .. झूम कर नाच उठा था तन-मन ! तुमने तब कहाँ बताया था कि तुम छोड़ आये थे वो खूबसूरत नगमे उन पहाड़ों में ताकि जब मैं लौटूँ कभी उनकी गोद में, तो जी सकूं अपने सभी ख़्वाब जो जाने-अनजाने हमारे ही ख़्वाब थे और साथ ही वो सारे अहसास जो तुमने पिरोए थे उन गीतों में ... तुम्हारी तन्हाई, तुम्हारा इंतज़ार और तुम्हारा प्यार !
          सुनो उस बारिश के साथ मेरी आँखों से बरसों का रुका सैलाब भी बह निकला था, कुछ बांध टूटे थे मगर दो मजबूत बाहें भी महसूस हुई जिनके घेरे में शायद फिर सुलगे थे कुछ ख़्वाब, कुछ हसरतें... और जी उठा था वो इंतज़ार, जो कहीं दबा कुचला अंतिम सांसें ले रहा था जैसे वेंटिलेटर ने लौटा दी हो, वो एक गहरी सांस जो ज़िन्दगी दे दे ।

🎵🎵🎶 अकेले हैं चले आओ जहाँ हो..
कहाँ आवाज़ दे तुमको कहाँ हो 🎶🎵

#सुन_रहे_हो_न_तुम

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