इश्क़ में दूरियां ?



सुनो, 

           ये बेवक़्त की उड़ी हुई नींद और इस रात की नीम ख़ामोशी में तुम्हारी तस्वीर लिए बतिया रही हूं तुमसे .. जानती हूं तुम अपनी उसी मासूमियत के साथ मुंह खोले सो रहे होंगे । जाने क्यों जब भी कोई बात मन में हलचल मचा देती है, मैं बेचैन हो जाती हूँ तुम्हें बताने के लिए .. नहीं जानती कि तुम तक मेरे ख़त पहुँचते भी हैं कि नहीं पर मेरा लिखना उतना ही जरूरी है जितना सांस लेना तो आज भी लिख रही हूं ..

       जाने क्यों ये लगता था कभी कि बस एक ही वो शख़्स होता है पूरी ज़िंदगी में जिससे हम सबसे ज्यादा गहराई तक जुड़ पाते हैं, इतनी गहराई कि जहाँ तक फिर कभी किसी को न दिखा सकें अपने अहसास, अपने जज़्बात और न ही उसी शिद्दत से जी सकें उन्हें किसी और के साथ । फिर तुम आये और सभी मानक टूटते गए उस गहराई के मगर जो सफ़र तुम्हारे साथ तय हुआ वो तो किसी और ही ऊंचाई तक ले गया ... हाँ गहराई के बाद ऊंचाई ही तो तय करता है इश्क़ ! 
        
         दूरियां केवल भ्रम हैं और हमारे बीच इन दूरियों का कोई अस्तित्त्व तभी मिट जाता है जब आंखें बंद करके बस महसूस कर लेती हूं तुम्हें, वैसे ही जैसे हमारे शहरों की दूरियां कभी महसूस नहीं हुई तुम्हारी एक पुकार के बाद या मेरी एक गहरी सांस में तुम्हारा नाम आने के बाद ... मैंने कहा था न तुमसे जब चाहूँ तुम्हारा साथ पा लूँगी और जानते हो हमारी चाहत ने बिना किसी शाब्दिक पुल के मुझे भावों की नदी पाटने का तरीका सिखा दिया । 
            
         पिछले दिनों एक प्यारी सहेली मिली अचानक और ऐसे जुड़ी मानो पूर्व परिचित हो , बड़ी पुरानी पहचान जिसे कम कह कर ज्यादा समझ पायी और समझा पायी । ताअज्जुब की बात ये है कि उसे भी यही लगता है कि मैं बिना कहे उसकी बात समझ सकती हूं । हमउम्र भी है और मेरे ही कॉलेज से पढ़ी हुई भी पर तब कभी नहीं मिली और अब इतने सालों बाद यूँ अचानक आवाज़ से ऐसे जुड़े कि लगता है अजनबी तो थे ही नहीं ...
          
         ये मेरी कोई ख़ूबी नहीं है ये हमारे बीच की वो महसूसियत है जिसने मुझे इतना संवेदनशील बना दिया कि मन झट से पहचान लेता है उस प्रेम को जो मेरी ओर बढ़ता है । तुम ये ख़त पढ़ो न पढ़ो पर एक-एक लफ़्ज़ तुम तक पैग़ाम है मेरे गहरे अहसास का जिसके जनक भी तुम हो, स्रोत भी तुम हो और मंज़िल भी 'तुम' ही हो ! 

#सुन_रहे_हो_न_तुम

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