तुम्हारा जाना


        तुमने कहा "मुझे जाना होगा, नहीं रुक पाऊंगा अब, नहीं जी पाऊंगा दोहरी ज़िन्दगी कि हमारे साझा ख़्वाब किसी और के साथ देखूं और उसमें तुम्हें जीता रहूं.."

"ठीक है अगर तुम समझते हो कि चले जाओगे तो चले जाना ही मुनासिब होगा मगर ख़्वाब केवल आंखें नहीं देखतीं, वो जीये जाते हैं जब दो मन मिलते हैं और जिन्हें जी लिया, चाहे ख़्यालों में ही सही, उनके निशाँ क्या कभी मिटाए जा सकते हैं मन की परतों को खरोंच कर ?"

"तो फिर क्या करूँ, कैसे जियूँ ? बेख़याली में अगर उसे तुम्हारे नाम से पुकार बैठा एक बार तो जानती हो न  क्या होगा? सब बिखर जाएगा, रिश्ते भी, विश्वास भी .."

"सुनो, छोड़ जाओ इन ख़्वाबों को मेरे पास, मैं ढक कर रख दूंगी इन्हें, बचा लूंगी वक़्त की बेरहम धूप से ....... अनमोल हैं ये क्योंकि इनमें गूंथा है हमारा साथ, जो तक़दीर ने लिखा था, चाहे कुछ वक़्त के लिए ही सही ..... इनमें वो सांसें भी हैं जो हर रात फ़ोन के इस पार से उस पार, और उस पार से इस पार सफ़र किया करती थीं ...... इनमें वो आधी नींद की बड़बड़ाहट भी है जिसमें हम दोनों एक दूसरे को पुकार कर महसूस किया करते थे .... इनमें वो सिंदूरी सुबह भी दमकती हैं जो हमने साथ-साथ आंखें मलते हुए बाहों में भरी थीं ....... इनमें वो अद्भुत महसूसियत है उन सब आलिंगनों और बोसों की जो हमारी दूरियां लांघ कर , हम तक हमारी मोहब्बत का संदेश पहुँचा दिया करते थे ... और क्या-क्या गिनाऊँ तुम्हें जो इन ख़्वाबों में लिपटा-गुंथा है ?"

"सब सही कह रही हो पर मैं क्या करूँ और तुम ... तुम कैसे जी पाओगी ये देख कर कि मैं किसी और के साथ हूँ ? बोलो तुम्हें नहीं फर्क पड़ेगा क्या?"

"जो मेरा है, वो किसी और का है ही कहाँ? जो किसी और का है वो तो मुझे चाहिए ही नहीं ... मेरा इश्क़ इतना तो गहरा है कि तुम जिस्म भर ही नहीं हो मेरे लिए, उससे कहीं गहरी पहुँच है मेरी और वहां इतनी जगह है ही नहीं कि कोई और आ जाये तो उसे कोई और जगह देनी पड़ेगी तुम्हें ...", हँसते हुए उस पगली ने कहा ।

#सुन_रहे_हो_न_तुम

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