प्रेम .... तलाश .... इंतज़ार


तुमने कहा 
तुम जीना चाहते हो प्रेम !
तलाशते रहे देह के उभारों में 
धौकनी सी चलती तेज़ साँसों में
तुम्हारे स्पर्श से सिंहरती पोरों में
दबे होंठों की सिसकारियों में
और फिर ज्वार उतरने के बाद 
लौट गए रीते ही 
काश कि थोड़ा रुक कर तलाशा होता 
तन्हा रातों की बेचैनियों में
करवटों में , सिलवटों में 
चुपके से ढुलकते अश्क़ों में 
भीगे तकिए पर उभर आए चकतों में
और सबसे ज्यादा मेरे 'इंतज़ार' में ...

#सुन_रहे_हो_न_तुम

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)