पहला स्पर्श

गाड़ी में साथ बैठे जब उसने हौले से हाथों में एक हाथ थामा तो यूँ लगा जैसे ये सबसे पहला स्पर्श है ... पहला यानि पहला ही इससे पहले स्पर्श किया ही नहीं किसी ने ..
अबोले से उन पलों में कितना कुछ कहा गया, कितना कुछ सुना गया । लबों से अल्फ़ाज़ का मेल तो हुआ पर मन जाने कहाँ - कहाँ विचरता रहा । इधर-उधर की बातों में समय उड़ता रहा और बिछड़ने की बेचैनी थी कि बढ़ती ही जा रही थी ।
      कुछ अहसास बयां होते ही कहाँ हैं ... उसने हथेली को लबों से छुआ और जैसे अंकित हो गया एक नाम टैटू की तरह , अमिट और गहरा ... मन तो था कि गले लग कर कहे, "क्या ये वक़्त यहीं रुक नहीं सकता? क्यों बिछड़ना होगा ये जानते हुए भी कि शायद ये आखिरी मुलाकात है?"
पर एक दोस्ताना आलिंगन के साथ "बाय" ही कह पायी वो और बिना पीछे मुड़े नम आंखों और लरजते होठों के साथ तेज़ी से आगे बढ़ गयी।
सुनो मेरी क़लम नहीं कह पाएगी कुछ पर तुम समझ लेना सब, अनकहा भी अनसुना भी ...

#सुन_रहे_हो_न_तुम

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