पहला ख़त

"वो जो खत लिखा था उस ठिठुरती रात में खुले आसमान के नीचे, अपनी गाड़ी की छत पर बैठकर और देने आए थे मुझे... मैं ले नहीं पायी तुमसे, बस झरती रहीं आंखें और बांध कर अपने कदम, रोके रही खुद को, कि कहीं दौड़कर तुमसे लिपट न जाऊं। लाज़मी था कि हम मिलते और खूब रोते पर डर ये भी था कि वो पहली मुलाकात आखिरी मुलाकात में तब्दील होने से पहले कड़वाहट न भर दे तुम्हारे मन में प्यार के लिए.. वो खत जिसे कबसे अपने वॉलेट में छुपा कर रखे हो, अब भी भीनी सी महक उठती होगी उसमें से, जब खोलते हो वॉलेट, क्या कभी दोगे मुझे वो खत ?"

"हाँ इस बार जब मिलोगी, पक्का दे दूंगा और फिर दूसरा खत लिखूंगा और करूँगा इंतज़ार अगली मुलाकात का ताकि तुम्हारे हाथों को थाम सकूँ वो खत देने के बहाने .. "
उफ्फ़ ये खत और तुम्हारा इंतज़ार ! कभी लगता है तुम्हारे साथ ये सफ़र बस इंतज़ार ही तो है ..पर जाने क्यों बुरा नहीं लगता ये लंबा इंतज़ार भी ...उस पार एक मुलाकात जो होती है हर बार 😊

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